रविवार, 21 अप्रैल 2013

ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा (रोला छंद)















ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा
गुलथुल, गोल-मटोल, सभी को लगता न्यारा
खेले मेरे साथ, नित्यदिन छुपम-छुपाई
चोर-सिपाही, दौड़ और पकड़म-पकड़ाई

लंबे-लंबे कान, रुई सी कोमल काया
भोले-भाले नैन, देख के मन हर्षाया
फुदक-फुदक चहुँओर, घूम घरभर में आता
गाजर-पालक खूब, मजे ले चट कर जाता

हमने इसको गिफ्ट, किया है नरम बिछावन
घर इक जालीदार, रंग जिसका मनभावन
करता है आराम, रात को उसमें जाकर
मिलता हमसे जाग, सुबह में बाहर आकर

14 टिप्‍पणियां:

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीया मोनिका शर्मा जी।

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  2. स्वागत है आपका आदरणीय कैलाश शर्मा सर। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार

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  3. उत्तर
    1. धन्यवाद चैतन्य, अच्छा लगा जानकर कि तुमको रचना पसंद आई :)

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  4. उत्तर
    1. आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय बृजेश कुमार जी। बहुत-बहुत धन्यवाद

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  5. बहुत सुन्दर खरगोश की उछल कूद देखते ही बनती हैं ...बहुत सुन्दर कविता

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    1. सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीया कविता रावत जी...........

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  6. आपकी यह प्रस्तुति भी 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारकर अवलोकन करें और आपका सुझाव/प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।

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  7. ......बहुत सुन्दर कविता
    अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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    1. धन्यवाद बंधुवर। आपके ब्लॉग पर आया भी हूँ और सदस्य के रूप में शामिल भी हो गया हूँ। स्नेह बनाए रखें।

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