ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा
गुलथुल, गोल-मटोल, सभी को लगता न्यारा
खेले मेरे साथ, नित्यदिन छुपम-छुपाई
चोर-सिपाही, दौड़ और पकड़म-पकड़ाई
लंबे-लंबे कान, रुई सी कोमल काया
भोले-भाले नैन, देख के मन हर्षाया
गाजर-पालक खूब, मजे ले चट कर जाता
हमने इसको गिफ्ट, किया है नरम बिछावन
घर इक जालीदार, रंग जिसका मनभावन
करता है आराम, रात को उसमें जाकर
मिलता हमसे जाग, सुबह में बाहर आकर
Sunder Baal Rachna
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका आदरणीया मोनिका शर्मा जी।
हटाएंस्वागत है आपका आदरणीय कैलाश शर्मा सर। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद चैतन्य, अच्छा लगा जानकर कि तुमको रचना पसंद आई :)
हटाएंबहुत ही सुन्दर!
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय बृजेश कुमार जी। बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर खरगोश की उछल कूद देखते ही बनती हैं ...बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीया कविता रावत जी...........
हटाएंआपकी यह प्रस्तुति भी 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारकर अवलोकन करें और आपका सुझाव/प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
जवाब देंहटाएंपुनः आभार आपका आदरणीया वंदना जी।
हटाएं......बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
धन्यवाद बंधुवर। आपके ब्लॉग पर आया भी हूँ और सदस्य के रूप में शामिल भी हो गया हूँ। स्नेह बनाए रखें।
हटाएंसुन्दर
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