करवाऊँ मैं क्यों भला, सागर अपने नाम।
अंतस को ही जब यहाँ, कुछ घूँटों से काम॥
रोज सिमटते दायरे, कहते इक ही बात।
दिन होंगे सबके अलग, अलग घिरेगी रात॥
महलों में ही काटकर, नर्म, मखमली रात।
चलती एसीरूम में, फुटपाथों की बात॥
चंदा की मुस्कान है, थोड़ी-थोड़ी मंद।
तारों का ये कार्यक्रम, आया नहीं पसंद॥
टूटा तारा एक फिर, उफ किस्मत का खेल।
धरा दुलारेगी नहीं, नभ ने दिया धकेल॥
आग बुझाने के लिए, जलती है फिर आग।
चलती रहती धौंकनी, छिड़ता जीवन-राग॥
अंतस को ही जब यहाँ, कुछ घूँटों से काम॥
रोज सिमटते दायरे, कहते इक ही बात।
दिन होंगे सबके अलग, अलग घिरेगी रात॥
महलों में ही काटकर, नर्म, मखमली रात।
चलती एसीरूम में, फुटपाथों की बात॥
चंदा की मुस्कान है, थोड़ी-थोड़ी मंद।
तारों का ये कार्यक्रम, आया नहीं पसंद॥
टूटा तारा एक फिर, उफ किस्मत का खेल।
धरा दुलारेगी नहीं, नभ ने दिया धकेल॥
आग बुझाने के लिए, जलती है फिर आग।
चलती रहती धौंकनी, छिड़ता जीवन-राग॥
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