मंगलवार, 24 जुलाई 2018

कृतज्ञ चींटी रानी नटकी (बाल कथा)

नटकी चींटी अपनी साथिनों के साथ सेठ लदकू बिल्ले के गोदाम में चीनी की बोरी में घुसी ही थी कि आज फिर दुष्ट डक्का सियार झाड़ू लेकर उन्हें भगाने दौड़ा। तभी एक कड़क आवाज गूँजी, 

"डक्का, क्या कर रहे हो? मैंने मना किया था न?" 

वह हड़बड़ा के रुक गया। सेठ लदकू जी अंदर आये। उनके चेहरे पर हल्का गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। 

"म...मालिक वो मैं चींटियों को..." 

डक्का की बात अधूरी रह गयी, सेठ जी बीच में ही टोक पड़े, 

"तुमको कितनीबार कहा कि बरसात आनेवाली है और चींटियों को अपना खाना जुटाना होता है, उनको भगाया मत करो" 

"ज...जी मालिक"
कहता डक्का जल्दी से बाहर निकल गया। नटकी ने भरी आँखों से सेठ जी को देखा और चीनी के दाने उठाने लगी। डक्का सियार, लदकू का नौकर था लेकिन एक नंबर का बेईमान और कामचोर। वह तो सेठ जी की दयालुता थी जो उसकी गरीबी पर तरस खाकर उसे काम दे रखा था वर्ना बाकी सभी जगहों से उसे दुत्कार के भगा दिया जाता था।

एक रात खूब बादल गरज रहे थे। नटकी ने भाँप लिया कि अभी जो बरसात शुरू हुई तो दो-चार दिनों से पहले नहीं रुकनेवाली सो वो अपनी टोली के साथ उतने समय का खाना लाकर रख लेने के लिए चल पड़ी। लदकू के गोदाम के पास वे अभी पहुँची ही थीं कि ताला खुला देख चौंक गयीं। रात के एक बज रहे थे और सेठ जी तो नौ बजे ही घर चले जाते हैं तो फिर ये ताला किसने खोला? नटकी को शक होने लगा और वह बाकियों को वहीं रुकने को बोलकर अकेली ही दबे पाँव अंदर घुसी। भीतर का नजारा देख उसके होश उड़ गये। बदमाश डक्का अपने एक और साथी सियार के साथ वहाँ रखे सामानों के डिब्बे उठा-उठाकर एक तरफ रख रहा था। नटकी को समझते देर न लगी कि ये दोनों यहाँ चोरी कर रहे हैं। 

वह दौड़ी-दौड़ी बाहर आयी और बाकी चींटियों को सारी बात बताकर उन दोनों शैतानों पर हमला बोलने का आदेश दिया। पूरी चींटी सेना उनपर टूट पड़ी। काट-काट के उनका बुरा हाल कर दिया। दोनों ने बहुत झाड़ने की कोशिश की लेकिन चींटियाँ गिर कर फिर से उनके शरीर पर चढ़ जातीं। नटकी समेत कई चींटियों को इसमें चोटें भी आयीं किन्तु उन्होंने पीछे हटने की बात तक नहीं सोची। दोनों चोरों के चिल्लाने का शोर सुनकर पड़ोसी जाग गये और लाठियाँ लिए वहाँ पहुँच गये। किसी ने सेठ लदकू जी को भी फोन कर दिया। वे पुलिस के साथ आये और दोनों बदमाशों को गिरफ्तार करवा दिया। 

"हमें तुमसे यह उम्मीद नहीं थी डक्का" 

वे पुलिस जीप में बैठ रहे डक्का से बोले। वह सिर झुकाए चुपचाप सुनता रहा। पुलिस की जीप लौट चुकी थी और सेठ जी नटकी तथा उसकी सखियों को अपनी हथेलियों पर बिठाकर दुलार रहे थे (समाप्त)

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