दुलरुआ फाग (गीत)
ग्यारहों मासों का
इकलौता दुलरुआ फाग
देखते उसको उतरतीं
पूस-माघी त्योरियाँ
चैत्र ले के गोद में
रहता सुनाता लोरियाँ
जेठ और बैसाख
रखते दूर अपनी आग
सानते भूले नहीं
सावन या भादो कीच में
टोकने आते नहीं हैं
क्वार-कातिक बीच में
नेह अगहन का मिले
आषाढ़ रखता लाग
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार सर
हटाएंआपका बहुत-बहुत आभार भाई
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