रविवार, 7 अप्रैल 2019

समझ गई रावी (बाल कहानी)

रावी आज फिर खाना खाते समय मुँह-नाक सिकोड़ रही थी।

"हुँह, मम्मी, यह कितनी बेकार सी दाल बनाई है और रोटी कच्ची लग रही है..."

मम्मी जानती थीं कि न दाल में कोई खराबी है और न ही रोटी में। गड़बड़ है तो बस रावी का स्वभाव। हर बात में गुस्सा, चिड़-चिड़ करते रहना, सो उन्होंने उसे समझाया,

"आज खा ले बेटी, शाम के खाने में तेरे पसंद की सत्तू भरी कचौरी बना दूँगी"

रावी खुश हो गयी लेकिन नखरे तो दिखाने ही थे इसलिए चुपचाप नाक फुलाकर खाने लगी। वह हमेशा ऐसे ही करती थी। बिना बात के किच-किच। पापा उसे समझाने लगते तो मम्मी कहतीं कि अभी बारह साल की तो है। बड़ी होगी तो खुद समझने लगेगी।

शाम को आसमान में काले बादल घिरने लगे। मम्मी छत पर सूख चुके कपड़े उतारने भागीं कि कहीं बारिश हो गयी तो भीग जाएँगे! रावी भी छत पर आकर ठंडी हवाओं के मजे लेने लगी। मम्मी, तार पर टँगे कपड़े उतार रही थीं कि तभी नीचे से गुजर रहे एक ट्रक ने उनके घर के बिल्कुल पास वाले बिजली के खंभे में जोर की टक्कर मार दी। धमाके सी आवाज हुई और खंभा मुड़कर उनके घर की ओर झुक गया। मम्मी चौंक उठीं लेकिन उनके कुछ समझ पाने से पहले ही खंभे के तारों में से दो तार टूटकर उनकी ही ओर उछल कर गिरने लगे।

"आऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ" मम्मी की चीख निकल गयी, रावी का भी कलेजा मुँह को आ गया। वह चिल्लाई, "मम्मीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ"

मम्मी के पैर घबराहट के मारे अकड़ गये और दोनों तार उनके ठीक आसपास आकर गिर गये। उनसे तड़तड़ाहट की आवाज आ रही थी, मतलब कि उनमें बिजली सप्लाई चालू थी। अच्छी बात ये हुई कि उनमें से किसी ने भी मम्मी को छुआ नहीं वर्ना बहुत बड़ा संकट आ सकता था। रोती हुई रावी दौड़कर मम्मी से लिपट गयी।

"अरे मैं ठीक हूँ रावी!" दिल तो मम्मी का भी तेजी से धड़कने लगा था लेकिन सबकुछ ठीक पाकर वे रावी को दिलासा देने लगीं। नीचे लोगों की भीड़ जुट चुकी थी। मम्मी कपड़े लेकर नीचे चली आयीं। रावी का मन अब भी खराब था। वह छत पर अपनी पड़ोस की सहेली सुनीता से इसी हादसे के बारे में बातें कर रही थी। सुनीता ने उसे बताया कि पिछले साल उसकी मौसी की मौत ऐसे ही बिजली के झटके से हो गयी थी। तब से उनके बच्चों को अपना सारा काम खुद करना पड़ता है। पापा जितना कर पाते हैं, कर के ऑफिस चले जाते हैं। यह सुनकर रावी की आँखों में फिर आँसू आ गये।

रात को मम्मी ने सत्तू वाली कचौरियाँ बना दीं। रावी प्लेट को देखते हुए सोच रही थी कि आज अगर मम्मी को कुछ हो जाता तो कौन बनाता ये कचौरियाँ? कितनी भाग्यशाली हूँ मैं जो मेरे मम्मी-पापा मेरे साथ हैं और मैं हमेशा अपनी जिद्दी आदत के कारण उनसे झगड़ती रहती हूँ। सोच-सोचकर उसका गला फिर भरने लगा। तभी मम्मी ने प्यार से पूछा,

"क्या बात है? खाना नहीं शुरू किया रावी मैम ने! कचौरियों में कोई खराबी लग रही है क्या?"

"नहीं मम्मी, कोई खराबी नहीं है" कहते हुए रावी ने कचौरी का एक टुकड़ा लेकर मम्मी को खिला दिया और खुद भी खाने लगी। माँ-बाप का महत्व उसकी समझ में आ चुका था। (समाप्त)


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