पूर्व निश्चित कार्यक्रम
के अनुसार राजेश आज मेरे घर आया हुआ था और मैं उसे उसके प्रस्तावित लघु उद्योग
हेतु ऋण प्रक्रिया के विषय में समझा रहा था। एक पड़ोसी और बैंककर्मी होने के नाते
यह मेरा नैतिक और व्यावसायिक दायित्व भी था। बहुत छोटा सा जेनरल स्टोर चलाने वाले
राजेश की बढ़ती पारिवारिक आवश्यकताएँ उसे नये क्षेत्रों में प्रयास करने के लिए
विवश कर रही थीं। उसे लगभग पच्चीस हजार रुपये का लोन चाहिए था।
पूरी प्रक्रिया को समझ के
राजेश जब जाने को उठा तो यकायक मुझे हमारे संसदीय क्षेत्र के सांसद महोदय द्वारा
इस गणतंत्र दिवस पर राजेश के दिवंगत दादा, जो कि स्वतंत्रता सेनानी थे, को मरणोपरांत सम्मान स्वरूप दी जानेवाली इक्कीस
हजार रुपये की घोषणा का स्मरण हुआ। मैंने उसे टोका,
"अरे राजेश, तुमको तो अभी इस छब्बीस जनवरी पर इक्कीस हजार रुपये
बैठे-बिठाए मिलने वाले! लोन के चक्कर में क्यों हो?"
"स्वतंत्रता सेनानी का वंश हूँ भैया! दादाजी के
नाम पर मिलने वाली हर राशि सदा किसी अभावग्रस्त को देता आया हूँ। अपने ऊपर व्यय
करने की हिम्मत आज तक नहीं जुटा पाया..."
वह मुस्कुरा के बोला और
चल पड़ा। मैं कृतज्ञ दृष्टि से उसे जाता देख रहा था। (समाप्त)
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लघुकथा में निहित अनुकरणीय संदेश कहीं से लघु नहीं है.
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आपका सादर आभार मैम
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 13 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका सादर आभार मैम
हटाएंलघु कथा लेकिन कितनी गमबीर बात । अनुकरणीय है ।
जवाब देंहटाएंमन को छू गयी ।
शुभकामनाएँ
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मैम
हटाएंस्वतंत्रता सेनानी का वंश हूँ भैया! दादाजी के नाम पर मिलने वाली हर राशि सदा किसी अभावग्रस्त को देता आया हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुन्दर संदेशपरक एवं अनुकरणीय ।
लाजवाब लघुकथा।
आपका हार्दिक आभार मैम
हटाएंछोटी कहानी, परंतु बातें महत्वपूर्ण,बहुत अच्छी पोस्ट, नमन, हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार मैम
हटाएंसपाट शब्दों में लाजवाब लघुकथा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं स्वागत आपका प्रीति जी
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जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
सादर आभार सर
हटाएंसुंदर संदेश संजोये लघुकथा!!!
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