इस मकर संक्रांति
चल हम भी बनें न्यारी पतंग
उत्तरायण सूर्य से
मन में रखी हर बात बोलें
डोर की गरिमा तले
कुछ पंछियों के संग हो लें
निकट से देखें
सजाता बादलों में कौन रंग
हैं जिधर मेले लगे
थोड़ा उधर भी घूम आएँ
गुड़-तिलों से फैलते
मीठेपने की लें बलाएँ
बीच में भागें बढ़ाकर
छतों पर खिलती उमंग
आज पुरवा की पिटारी
कुछ नवेली सी महकती
सभी कोनों के भरे संवाद
जो वह है चहकती
झूम उसकी गोद में
जानें कहाँ के क्या हैं ढंग
चल हम भी बनें न्यारी पतंग
उत्तरायण सूर्य से
मन में रखी हर बात बोलें
डोर की गरिमा तले
कुछ पंछियों के संग हो लें
निकट से देखें
सजाता बादलों में कौन रंग
हैं जिधर मेले लगे
थोड़ा उधर भी घूम आएँ
गुड़-तिलों से फैलते
मीठेपने की लें बलाएँ
बीच में भागें बढ़ाकर
छतों पर खिलती उमंग
आज पुरवा की पिटारी
कुछ नवेली सी महकती
सभी कोनों के भरे संवाद
जो वह है चहकती
झूम उसकी गोद में
जानें कहाँ के क्या हैं ढंग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें