शनिवार, 21 जुलाई 2018

हम भी बनें न्यारी पतंग

इस मकर संक्रांति
चल हम भी बनें न्यारी पतंग

उत्तरायण सूर्य से
मन में रखी हर बात बोलें
डोर की गरिमा तले
कुछ पंछियों के संग हो लें
निकट से देखें
सजाता बादलों में कौन रंग

हैं जिधर मेले लगे
थोड़ा उधर भी घूम आएँ
गुड़-तिलों से फैलते
मीठेपने की लें बलाएँ
बीच में भागें बढ़ाकर
छतों पर खिलती उमंग

आज पुरवा की पिटारी
कुछ नवेली सी महकती
सभी कोनों के भरे संवाद
जो वह है चहकती
झूम उसकी गोद में
जानें कहाँ के क्या हैं ढंग

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