है सजग गुदड़ी बहुत
फुटपाथ पर
टोकरों में आस संध्या की रखे
आज थोड़ी दाल भी बिटिया चखे
चर न जाएँ सब अभी ही
जानवर
पूस का भी मान रखना पड़ रहा
उष्णता का ध्यान रखना पड़ रहा
कौन तड़पे बिन दवा के
रात भर
कंबलों में घूमते अनगिन कुरंग
जो इशारों में दिखा देते पलंग
बैठना सो लाज को भी
ढाँप कर
वाहनों वाले भिखारी आ रहे
हाथ जो भी लग रहा, ले जा रहे
धौंस उस पर
चुप! नहीं तो भाग घर!
फुटपाथ पर
टोकरों में आस संध्या की रखे
आज थोड़ी दाल भी बिटिया चखे
चर न जाएँ सब अभी ही
जानवर
पूस का भी मान रखना पड़ रहा
उष्णता का ध्यान रखना पड़ रहा
कौन तड़पे बिन दवा के
रात भर
कंबलों में घूमते अनगिन कुरंग
जो इशारों में दिखा देते पलंग
बैठना सो लाज को भी
ढाँप कर
वाहनों वाले भिखारी आ रहे
हाथ जो भी लग रहा, ले जा रहे
धौंस उस पर
चुप! नहीं तो भाग घर!
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