धरती से शशि कहता होगा
ये किनको तू पाल रही!
घाव नये जो रह-रह देकर
पहले तुझे रुलाते हैं
उन्हीं सिसकियों को फिर वे
"आया भूचाल" बताते हैं
देख रहा हूँ घुट-घुट के
खुद को हर बार सम्हाल रही
तब धरती माँ कहती होंगी
ये मेरे ही बच्चे हैं
होते बड़े समझ सब लेंगे
अभी उम्र के कच्चे हैं
थोड़ा-थोड़ा कर इनको
अपने साँचे में ढाल रही
मानव नामक जीव इधर
मुँह को फैलाये जाता है
अब कपूत ही रह सकता वो
इसपर मुहर लगाता है
ऐसों को जीवन देने की
पीर हवा को साल रही

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