मैं दर्पण ही तो हूँ तुम्हारा
सँवारा है नित्य तुमको विभिन्न कोणों से
तुममें साकार होना मैंने स्वीकार लिया
किन्तु तुमने?
तुमने सदैव समझा मुझे वस्तु उपभोग की
बदलने को भी आतुर रहे क्षण-क्षण
गंदलाते रहे अपनी कलुषित कामनाओं से
परिणाम स्वयं देख लो
आज विवश हो चुके हो धुँधलेपन के साये में
निस्तेजता से अनभिज्ञ, भ्रमित
कितनी दूर चले गये न सार्थकताओं से
उफ!!!
काश, समय रहते समझ लिया होता
हमारा अस्तित्व समानुपाती है, व्युत्क्रमानुपाती नहीं
सँवारा है नित्य तुमको विभिन्न कोणों से
तुममें साकार होना मैंने स्वीकार लिया
किन्तु तुमने?
तुमने सदैव समझा मुझे वस्तु उपभोग की
बदलने को भी आतुर रहे क्षण-क्षण
गंदलाते रहे अपनी कलुषित कामनाओं से
परिणाम स्वयं देख लो
आज विवश हो चुके हो धुँधलेपन के साये में
निस्तेजता से अनभिज्ञ, भ्रमित
कितनी दूर चले गये न सार्थकताओं से
उफ!!!
काश, समय रहते समझ लिया होता
हमारा अस्तित्व समानुपाती है, व्युत्क्रमानुपाती नहीं
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