तम होता बेहद कुटिल, बात हुई यह सिद्ध।
तल में छिप मौका तके, दीपक कब हो वृद्ध॥
तल में छिप मौका तके, दीपक कब हो वृद्ध॥
सजी हुई अंबर तले, वृक्षों की चौपाल।
विषय पुराना आज भी, वनजीवन का हाल॥
विषय पुराना आज भी, वनजीवन का हाल॥
राजनीति के खेल में, निष्ठा और उसूल।
ढूँढ रहा मन बावरे, क्यों गुल्लर के फूल॥
ढूँढ रहा मन बावरे, क्यों गुल्लर के फूल॥
अगहन तो थोड़ी-बहुत, रख भी लेता लाज।
पूस नहीं सुनता तनिक, गुदड़ी की आवाज॥
पूस नहीं सुनता तनिक, गुदड़ी की आवाज॥
छीन व्यवस्था ने लिए, जिसके तन से वस्त्र।
शव उसका ही बन गया, राजनीति का अस्त्र॥
शव उसका ही बन गया, राजनीति का अस्त्र॥
झूठी तेरी भावना, सच्ची मेरी प्रीति।
सच्चे-झूठे का मिलन, रही न जग की रीति॥
सच्चे-झूठे का मिलन, रही न जग की रीति॥
खुद में तुम करते गये, मुझको इतना अल्प।
तुम्हें त्यागने के सिवा, बचे न और विकल्प॥
तुम्हें त्यागने के सिवा, बचे न और विकल्प॥
बिल्कुल भी बदला नहीं, जीवन का वह मोड़।
ठीक हुआ जो मैं उसे, आया पीछे छोड़॥
ठीक हुआ जो मैं उसे, आया पीछे छोड़॥
कहीं कुटिलता की चुभन, कहीं हवस की आग।
कितना बच-बचकर चले, किलकारी निरभाग॥
कितना बच-बचकर चले, किलकारी निरभाग॥
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