सोमवार, 23 जुलाई 2018

ताजा रिश्ता (लघुकथा)

ब्याह के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे के व्यवहार को जानने की कोशिश कर रहे थे। पति के व्यवहार और आदतों को जानने के साथ नयी बहू के लिए कुछ चीजें अच्छी लेकिन चौंकाने वाली भी थीं। बहुत दिनों तक देखने के बाद नयी-नवेली आज आखिर उससे पूछ ही बैठी

"मम्मी जी जब कद्दू बनाती हैं तो इतनी ना-नुकुर करते हो लेकिन मेरी बनाई हुई अभी फिर खाए जा रहे। चक्कर क्या है?"

रोटी में थोड़ी और सब्जी लपेटते हुए उसने बिना चेहरा ऊपर किए जवाब दिया,

"मम्मी से मेरा रिश्ता पक्के फर्श की तरह है जिस पर कितनी भी उछल-कूद करूँ, कुछ नहीं बिगड़ने वाला जबकि तुम्हारा-मेरा उसी ताजा-ताजा ढाली गयी छत के जैसा जहाँ एक-एक कदम सँभल-सँभल के रखना पड़ता है। एकबार यहाँ जम जाओ, तुम्हारा बनाया कद्दू भी नहीं खाऊँगा"

बेलन शरारत से उसके सिर पर मार के किचेन में वापस घुसती हुई वह महसूस कर रही थी कि उसे बिल्कुल सही जीवनसाथी का साथ मिला था। अपनी बात रखने के लिए उसे भी समझे जाने का इंतजार था।

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