सोमवार, 23 जुलाई 2018

जीवन से आस (लघुकथा)

"तू भी कमाल का आदमी है सुनील, एक तो मेरा बताया बढ़िया प्लान छोड़कर ये पैंतीस की उम्र में पेंशन प्लान ले लिया ऊपर से इसमें भी केवल अपने जीवन भर ही पेंशन मिलने का विकल्प चुन रहा, आगे तेरी मृत्यु के बाद पेंशन भाभी को मिले और जो रकम इसको लेने में लगी वह भी उन्हें लौटा दी जाए, वो क्यों नहीं कर रहा?" बीमा एजेंट पंकज थोड़ा झल्ला गया।

बीमा दस्तावेज भरने में जुटे सुनील के चेहरे पर गंभीर मुस्कुराहट चमक उठी,

"पंकज बाबू, पहली बात तो ये कि मैं व्यवसायी हूँ सो मुझे एक आर्थिक सुरक्षा की जरूरत है दूसरी कि आप जो विकल्प बता रहे उसमें पेंशन की राशि कम हो जाएगी और तीसरी तथा सबसे महत्वपूर्ण चीज कि आज के जमाने में किसी को भी आस अपने जीवन से देनी चाहिए, मृत्यु से नहीं" 

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