मानसी शाम को किचन में अकेले बहुत परेशानी महसूस
कर रही थी. उसका पति अतुल घर पर नहीं था, अन्यथा वह रोज उसकी सहायता कर देता था.
कमरे से बार-बार आती दो साल की बेटी की रोने की
आवाजें उसकी खीज और बढ़ा देतीं. दौड़ के कमरे में उसके पास जाना और फिर वापस रसोई
में आना...ओह्ह्ह! माथे से पसीना पोंछते-पोंछते उसे गुस्सा आने लगा. तभी नजरें
अपने ससुर पर पड़ीं जो अपने शयनकक्ष में बैठे टीवी देख रहे थे. मानसी और जल्दी में
आ गयी.
“समय से खाना न मिले तो कहें भले कुछ नहीं लेकिन
शक्ल खडूस वाली बन जाती इनकी...”
भुनभुनाती हुई वह पराँठे बनाने की तैयारी करने
लगी. तभी एक डिब्बे में बचे कुछ पुराने रिफाइंड तेल का ख्याल आया.
“कोई ज्यादा पुराना तो है नहीं! बना देती हूँ
इसी में...इतनी जल्दी नुकसान थोड़े करेगा!”
सोचकर उसने वही तेल कटोरी में डाल लिया. तभी
उसका मोबाइल बजा. देखा तो उसके पापा का फोन आ रहा था. चहक के रिसीव किया लेकिन
खाना बनाने की जल्दी थी सो बोल दिया कि रात में आराम से बात करुँगी.
पापा भी बात समझ गये और लम्बी साँस लेकर बोले,
“ठीक है, तू कर अपना काम..मेरे लिए भी तेरी भाभी
खाना ही बना रही है...रात को फोन करता हूँ”
फोन कट होने के बाद मानसी सोच में पड़ गयी. उसके
पापा भी तो किसी के ससुर हैं! उनके लिए भी खाना किसी और घर की बेटी बना रही. अगर
उसकी भाभी ने भी इसी तरह लापरवाही से उसके पिता को जैसे-तैसे कुछ बनाकर दे दिया
तो! उसे अपनी भूल का अहसास हुआ.
उसने पुराने रिफाइंड तेल वाली कटोरी एक तरफ रखी
और नया पैकेट खोलने लगी.
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