मंगलवार, 24 जुलाई 2018

लौट आये मम्मी-पापा (लघुकथा)

शोभा देवी बिस्तर पर लेटने से पहले अपनी खिड़की के टूटे काँच की जगह कामचलाऊ रूप से लगाए गये अखबारों के फटे हिस्से ठीक कर रही थीं। बेटा कब से काँच लाकर रखे हुए था लेकिन नखरेबाज बढ़ई आये तब तो! सर्दी की रात में थोड़ी सी भी ठंडी हवा सुई जैसी चुभती, ऊपर से सत्तर के पास पहुँचती उम्र। कुछ अखबार कम पड़ रहे थे। लाने जा ही रही थी कि डिम्पू और डिम्मी अखबारों का बंडल लिए आ पहुँचे। डिम्पू बोला,

"दादी, हटो, हम लगा देते हैं खिड़की में पेपर"

शोभा देवी के देखते ही देखते वे दोनों कुर्सी पर चढ़ के खिड़की से भिड़ गये। ठंडी हवा धीमी ही सही लेकिन लगातार आ रही थी। शोभा देवी ने बच्चों को टोका,

"अरे उतरो तुमलोग, हवा आ रही है, बीमार पड़ जाओगे"

डिम्मी अपनी चिरपरिचित शैली में अपने चश्मे को ठीक करती हुई बोली,

"हम बीमार पड़े तो हमारे मम्मी-पापा हमारी देखभाल कर लेंगे, आपकी कौन करेगा? यहाँ काम करने से बीमार तो आप भी हो सकतीं!"

शोभा देवी को हँसी आ गयी।

"अरे मेरे मम्मी-पापा तुमलोगों के रूप में लौट आये हैं, चल हट मुझे करने दे"

शोभा देवी ने डिम्मी की नाक पकड़ के कहा और उनके साथ अखबार लगाने में जुट गयीं।

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