किराने की दुकान पर मैं कुछ सामान खरीद रहा था। साथ में पड़ोसी डॉक्टर साहब भी थे। तभी मैंने देखा कि विनीत भी वहाँ आया। भीड़ के कारण शायद उसकी नजर मुझपर नहीं पड़ी। उसने दुकानदार से कहा,
"आधा किलो घी देना भाई"
मैं उसकी इस डिमांड को सुनकर चौंक उठा, "घी! ये तो कल ही अपनी आर्थिक तंगी का रोना रोकर मुझसे पाँच सौ रुपये माँग के ले गया है और यहाँ घी खरीद रहा!" संयोगवश उसने नोट भी वही निकाला जो मैंने उसे दिया था, उसपर लगे अपने पेन के निशान को मैंने साफ-साफ देख लिया था। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं धीरे से डॉक्टर साहब का ध्यान उसकी ओर दिलाते हुए बोला,
"ये देखिए डॉक्टर साहब, कर्ज लेकर घी पीने वाली बात का साक्षात उदाहरण"
डॉक्टर साहब विनीत द्वारा मुझसे पैसे लेने वाली बात से परिचित थे। वे मुस्कुराये और बोले,
"समझिए तो वो घी नहीं, दवा खरीद रहा है भाई जी, उसकी बीवी की कमर में दर्द रहता, जिसके कारण मैंने उसे दूध में घी डालकर सेवन कराने की सलाह दी थी"
मैं अवाक रह गया। अगले ही क्षण विनीत और मैं, दोनों वहाँ से चल पड़े। वो अपनी बीवी की दवा लेकर जा रहा था तो मैं अपनी पूर्वाग्रह युक्त सोच की...
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