शनिवार, 14 जुलाई 2018

अनोखा हीरा (बोधकथा)

किसी देश का राजा अपनी प्रजा का समाचार लेने के लिए नगर भ्रमण पर था कि तभी उसके राजमुकुट से एक हीरा निकल के सड़क पर गिर गया। किसी की दृष्टि उसपर नहीं गयी। शाम को एक वस्त्रों का व्यापारी उधर से गुजरा। उसने बहुमूल्य, चमचमाते हीरे को देखा तो उठा के घर ले आया और अपनी पत्नी के हार में जड़वा दिया। 

पड़ोसिनों ने इतना कीमती हीरा उसे पहने देख मारे जलन के पूरे इलाके में बात फैला दी। अपने हीरे को ढूँढते राजा तक सूचना पहुँची तो उसने व्यापारी और उसकी पत्नी को दरबार में बुलवाया। डर के मारे व्यापारी ने हाथ
जोड़ दिये। 

राजा दयालु था। उसने व्यापारी से कहा कि तुम निराश मत हो, हम तुम्हें इसका मूल्य चुका देंगे किन्तु तभी हीरा काला पड़ने लगा। सब चकित रह गये। तब हीरे से आवाज आई कि हे राजन! इस व्यापारी कुल के पास मैं अकेला हीरा हूँ अतः एक हीरे को जो सम्मान मिलना चाहिए यहाँ वह समूचा केवल मुझे ही मिल रहा है एवं आपके मुकुट में तो मुझ जैसे अनेक हीरे जड़े हैं सो आपका प्रेम हम सबमें बँट जाता था, मुझे पुनः वही बँटा हुआ भाग न लेना पड़े, इसी चिंता से मेरा ओज खो रहा है। उस अनोखे हीरे की यह इच्छा जान राजा दुखी हो उठा कि अपने मूल्यवान नगीनों में से इस एक को अब खोना पड़ेगा लेकिन उसके कहे गये शब्दों का मर्म समझते हुए उसने उसे सदा-सदा के लिए उसी व्यापारी को दान कर दिया। 

राजा की जय-जयकारों के बीच हीरे की अद्भुत चमक तेजी से वापस आ रही थी।

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