लम्पू खरगोश ने स्कूल से लौटते ही बस्ता एक ओर पटका और अपने कमरे में जाकर मुँह लटका के बैठ गया। मम्मी दौड़ी-दौड़ी आयी।
"क्या हुआ बेटे? क्यों उदास हो?" लेकिन कोई जवाब नहीं। मम्मी ने चेहरा ऊपर करवाया तो देखा कि लम्पू रो भी रहा था।
"अरे बेटा, कुछ बताओगे नहीं तो मैं तुम्हारी परेशानी दूर करने का उपाय कैसे करूँगी?" मम्मी चिंतित होते हुए बोली।
लम्पू मम्मी की गोद में लेट गया,
"मम्मी मैं क्या बताऊँ? स्कूल में मेरे साथ पढ़ने वाले कोई गलत बात कहते हैं और जब मैं उनका विरोध करता हूँ तो उल्टा बहस करने लग जाते। मैं कितने भी सही बिन्दु दिखा दूँ पर मानते ही नहीं। मैं तंग आ गया हूँ"
"ओह्हो बेटा, बस इतनी सी बात! चलो छोड़ो उसे, मैं तुम्हें ये कहने वाली थी कि टीवी न एकदम बेकार चीज होती है, शोरगुल, ड्रामा बस, है न?"
"आँय! ये क्या बात हुई? टीवी पर बहुत कुछ अच्छे प्रोग्राम भी तो आते हैं!"
"नहीं बेटे, उस पर अच्छा कुछ भी नहीं आता केवल बोर करने वाली फिल्में, बकवास क्रिकेट मैच, फालतू कार्टून यही सब तो दिखाते"
"अरे मम्मी उसपर ज्ञान की भी तो कई बातें आती हैं!"
"क्या फायदा बेटा? वह सब तो हम किताबों से भी पढ़ के सीख सकते हैं! टीवी बेकार चीज है तो है"
"मम्मी अब तुम भी मेरे उन्हीं सहपाठियों की तरह अपनी गलत बात को सही साबित करने के लिए जबरदस्ती करने लगी!" लम्पू झल्ला उठा।
मम्मी मुस्कुरा उठी,
"हाँ अब समझे? जो लोग कोई गलत बात कह के उसको सही साबित करने के लिए अड़ जाएँ तो वैसी परिस्थिति में हम कुछ नहीं कर सकते इसलिए हमें वहाँ बहस करनी ही नहीं चाहिए। इससे उनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन हमारा मन जरूर खराब हो जाएगा जैसे कि आज तुम्हारा हुआ"
"सही कहा मम्मी, आगे से मैं इस बात का ध्यान रखूँगा"
खुश होता हुआ लम्पू मम्मी से लिपट गया (समाप्त)
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