गर्मियों की गोद पाकर
खिल उठा देखो पवन
आम ने मीठा, महकता इत्र डाला
भभकने फिर से लगी है कर्म-ज्वाला
हाट की भी मुस्कुराहट लौट आयी
छीनती संध्या नहीं अब जो निवाला
तन उजालों का बढ़ा तो
मन लगा होने मगन
दोपहर हाला लिए आने लगी है
सब थकावट दूर कर जाने लगी है
बाग अंगूरी प्रणय की बात करते
रात छत पर नेह बरसाने लगी है
जो घटा, उसकी महत्ता
बढ़ गयी, ऐसा चलन
तृप्तियों के मध्य संचय मुस्कुराता
मेघ बन के चोटियों पर गुनगुनाता
प्यास के उत्कर्ष ने हमको बताया
आँख का पानी कहाँ, कब काम आता
देख कर आभास होता
कर रही प्रकृति हवन
खिल उठा देखो पवन
आम ने मीठा, महकता इत्र डाला
भभकने फिर से लगी है कर्म-ज्वाला
हाट की भी मुस्कुराहट लौट आयी
छीनती संध्या नहीं अब जो निवाला
तन उजालों का बढ़ा तो
मन लगा होने मगन
दोपहर हाला लिए आने लगी है
सब थकावट दूर कर जाने लगी है
बाग अंगूरी प्रणय की बात करते
रात छत पर नेह बरसाने लगी है
जो घटा, उसकी महत्ता
बढ़ गयी, ऐसा चलन
तृप्तियों के मध्य संचय मुस्कुराता
मेघ बन के चोटियों पर गुनगुनाता
प्यास के उत्कर्ष ने हमको बताया
आँख का पानी कहाँ, कब काम आता
देख कर आभास होता
कर रही प्रकृति हवन
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