तुम बने हुए हो श्वेत कबूतर शांति के प्रतीक वाले
अच्छी बात है, बहुत अच्छी बात है
लेकिन आकाश कहाँ है तुम्हारा? और कैसा है?
कभी पूछा भी है उसका हाल तुमने?
या जबरन फड़फड़ाते हो पंख कहीं-कहीं दिखाने के लिये!
अपनी राजनीति चमकाने के लिये!
देखो आँखें खोलकर या कहो तो छोड़ो ये दिखावे अनभिज्ञ बनने के
पता है न किसी समय अपने हाथों से काटना पड़ा था हमें हमारा ही एक अंग
जिसकी रगों में भर चुका था बारूद ही बारूद खून से ज्यादा
परन्तु दुर्भाग्य ने छोड़ा नहीं साथ और बचा लिये गये कुछ जहरीले अंश
जिन्होंने किया फिर से विस्तार बहुत तेजी से
उनको शिकायतें ही शिकायते हैं जमानेभर से कुछ न कुछ
जो उड़ाते रहते हैं धुआँ रह-रह के और घोंटते हैं दम हमारी पीढ़ियों का
हम गुलाब थे, हैं और रहेंगे किन्तु
आज लेना पड़ रहा है हमको ही सहयोग अपने काँटों का अपनी रक्षा के लिये
जिन्हें कभी पसंद नहीं किया हमने फिर भी विवश हैं
और तुम? तुम मारते हो चोंच हमको ही पिंजरा बता के बार-बार
चर्चा भी नहीं करते उस पाशविकता की जिसमें पूरब का प्रतिशोध पश्चिम से लिया जाता है
अतः कारण बताओ हमको कि हम क्यों न मानें तुम्हें कालनेमि?
जो आया है हमारे अंदर के हनुमान को रोकने
क्यों न समझें तुम्हें वह मारीच जो इस युग में भी कर रहा है यत्न पर यत्न
नवीन सीताहरण का माध्यम बनने का एवं सफल भी हो रहा कई जगह
नहीं! नहीं! नहीं! हम नहीं मानेंगे तुमको अपना अगुआ
हमने ढूँढ लिया है अपना सूरज
कुछ नहीं लेना अब तुम्हारे उजालों से हमें
हम देख चुके हैं तुम्हारे पासे जिनसे खेलते हो तुम एकदम शकुनि की तरह
सो दूर रहो हमारे उस उपवन से जहाँ आमंत्रित होते हैं केवल गरुड़
हम ही हैं वे जिनमें खिलखिला सकते हैं सारे रंग बिना किसी भेदभाव के
हम ही हैं वे जो नहीं उखाड़ते किसी को केवल उसकी जड़ों के कारण
हाँ, भस्म किया है हमने युगों-युगों से पाप, ताप, संताप के वाहकों को
यही परंपरा है हमारी और इसी को प्रणाम करेंगे हम सदैव
तुम समझाना ही चाहते हो तो जाकर समझाओ उन आँधियों को
जो औरों के विनाश को ही अपना अस्तित्व माने बैठीं हैं
घोल दो उनमें सुगंध हमारी थोड़ी सी भी
फिर देखना
कैसे बन जाएँगी वे प्राणवायु मानवता के लिये क्षणभर में
नहीं कर सकते तो जाओ अपने रस्ते
करते रहो बेसुरी गुटरगूँ अपने आका गिद्धों के साथ रात-दिन
बनाते रहो योजनाएँ हमको छलने की विविध प्रकारों से भिन्न-भिन्न वेश बना के
फैलाते रहो गंद कागजों से लेकर यंत्रों तक
हम भी दिखाते रहेंगे अपने नौनिहालों को सब खेल तुम्हारी प्रजातियों का
तथा सिखलाते रहेंगे करना प्रतिकार पारंपरिक विधि से षड्यंत्रों का
बस रहे इतना ही ध्यान कि जिनके चरणों में अपना भविष्य देखा है न तुमने
वे अंधे कुएँ हैं भटकती आत्माओं के जिनमें न नरक है न स्वर्ग
मात्र एक कैद है जिसकी अवधि कोई नहीं जान पाया आज तक
शेष प्रतीक्षा करना
तुम्हारा भी न्याय कर ही देंगे एक न एक दिन हम अपनी तुला पर...
अच्छी बात है, बहुत अच्छी बात है
लेकिन आकाश कहाँ है तुम्हारा? और कैसा है?
कभी पूछा भी है उसका हाल तुमने?
या जबरन फड़फड़ाते हो पंख कहीं-कहीं दिखाने के लिये!
अपनी राजनीति चमकाने के लिये!
देखो आँखें खोलकर या कहो तो छोड़ो ये दिखावे अनभिज्ञ बनने के
पता है न किसी समय अपने हाथों से काटना पड़ा था हमें हमारा ही एक अंग
जिसकी रगों में भर चुका था बारूद ही बारूद खून से ज्यादा
परन्तु दुर्भाग्य ने छोड़ा नहीं साथ और बचा लिये गये कुछ जहरीले अंश
जिन्होंने किया फिर से विस्तार बहुत तेजी से
उनको शिकायतें ही शिकायते हैं जमानेभर से कुछ न कुछ
जो उड़ाते रहते हैं धुआँ रह-रह के और घोंटते हैं दम हमारी पीढ़ियों का
हम गुलाब थे, हैं और रहेंगे किन्तु
आज लेना पड़ रहा है हमको ही सहयोग अपने काँटों का अपनी रक्षा के लिये
जिन्हें कभी पसंद नहीं किया हमने फिर भी विवश हैं
और तुम? तुम मारते हो चोंच हमको ही पिंजरा बता के बार-बार
चर्चा भी नहीं करते उस पाशविकता की जिसमें पूरब का प्रतिशोध पश्चिम से लिया जाता है
अतः कारण बताओ हमको कि हम क्यों न मानें तुम्हें कालनेमि?
जो आया है हमारे अंदर के हनुमान को रोकने
क्यों न समझें तुम्हें वह मारीच जो इस युग में भी कर रहा है यत्न पर यत्न
नवीन सीताहरण का माध्यम बनने का एवं सफल भी हो रहा कई जगह
नहीं! नहीं! नहीं! हम नहीं मानेंगे तुमको अपना अगुआ
हमने ढूँढ लिया है अपना सूरज
कुछ नहीं लेना अब तुम्हारे उजालों से हमें
हम देख चुके हैं तुम्हारे पासे जिनसे खेलते हो तुम एकदम शकुनि की तरह
सो दूर रहो हमारे उस उपवन से जहाँ आमंत्रित होते हैं केवल गरुड़
हम ही हैं वे जिनमें खिलखिला सकते हैं सारे रंग बिना किसी भेदभाव के
हम ही हैं वे जो नहीं उखाड़ते किसी को केवल उसकी जड़ों के कारण
हाँ, भस्म किया है हमने युगों-युगों से पाप, ताप, संताप के वाहकों को
यही परंपरा है हमारी और इसी को प्रणाम करेंगे हम सदैव
तुम समझाना ही चाहते हो तो जाकर समझाओ उन आँधियों को
जो औरों के विनाश को ही अपना अस्तित्व माने बैठीं हैं
घोल दो उनमें सुगंध हमारी थोड़ी सी भी
फिर देखना
कैसे बन जाएँगी वे प्राणवायु मानवता के लिये क्षणभर में
नहीं कर सकते तो जाओ अपने रस्ते
करते रहो बेसुरी गुटरगूँ अपने आका गिद्धों के साथ रात-दिन
बनाते रहो योजनाएँ हमको छलने की विविध प्रकारों से भिन्न-भिन्न वेश बना के
फैलाते रहो गंद कागजों से लेकर यंत्रों तक
हम भी दिखाते रहेंगे अपने नौनिहालों को सब खेल तुम्हारी प्रजातियों का
तथा सिखलाते रहेंगे करना प्रतिकार पारंपरिक विधि से षड्यंत्रों का
बस रहे इतना ही ध्यान कि जिनके चरणों में अपना भविष्य देखा है न तुमने
वे अंधे कुएँ हैं भटकती आत्माओं के जिनमें न नरक है न स्वर्ग
मात्र एक कैद है जिसकी अवधि कोई नहीं जान पाया आज तक
शेष प्रतीक्षा करना
तुम्हारा भी न्याय कर ही देंगे एक न एक दिन हम अपनी तुला पर...
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