रविवार, 22 जुलाई 2018

जान बची (लघुकथा)

"अरे दीपिका, ये जेन्ट्स ब्रेसलेट तुम्हारे बैग में? वो भी एकदम न्यू पैक्ड...."

"हँ...हाँ सिद्धार्थ, ये तुमको ही बर्थडे में प्रेजेंट करने के लिए तो लायी"

"लेकिन मेरा बर्थडे तो कल बीत गया"

"यार मेरी भूलने की आदत भी न, देखो फिर गड़बड करा दी....खैर छोड़ो, लाओ मैं अपने हाथों से पहनाऊँगी"

सिद्धार्थ ने हाथ जेब से बाहर निकाला ही था कि साथ एक डिबिया भी जेब से निकल गिर गयी। दीपिका ने उठाया

"अरे, हार्ट शेप्ड लॉकेट!!!! मेरे लिए न डार्लिंग, ओह्ह यू आ सो स्वीट"

"हम्म...ह्म...हाँ हनी, य...ये आज ही लिया खास तुम्हारे लिए, चलो पहले मेरी बारी, मैं ये तुम्हारे गले में सजा दूँ फिर तुम्हारे ब्रेसलेट को कबूल करुँगा"

"ओेके" दीपिका मुस्कुरा के बोली

अपनी-अपनी लायी चीजें एक-दूसरे के हवाले कर दोनों गले लग गये। उनके मन में एक ही ख्याल था

चलो जान बची.....

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