"ओह्हो मम्मी, मैंने कहा न कि मुझे वर्मा अंकल के घर नहीं जाना, वे मुझे अच्छे नहीं लगते बस" पैर पटकते मीकू ने गुस्से से कहा
"अरे देख रहे हैं इसकी जिद? कुछ कहिए तो..."
"जिद वो नहीं तुम कर रही हो" पापा हमेशा की तरह मीकू के पक्ष में हो गये "जब उसका नहीं मन जाने का तो क्यों जोर दे रही? दूध पीता बच्चा थोड़े है अब! बारह साल का हो चुका और कौन सा हम महीनेभर के लिए जा रहे? घंटे-दो घंटे की बात, वर्मा के बेटे का जन्मदिन नहीं होता तो जाते भी नहीं"
"आप मेरी सुनते कब जो आज सुनेंगे!" मम्मी ने अपना पर्स कंधेपर डाला और मीकू से बोली,
"तेरे आलू के पराँठे किचेन में हैं रखे, भूख लगे तो खा लेना"
"ओके मॉम हीहीही" अपनी जीत से मीकू बहुत खुश था
मम्मी ने धीरे से पास के कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से लगा दी।
"उसमें हैप्पी, जोजो हैं यार!" पापा हैरत से बोले
"हाँ तभी लॉक कर रही हूँ, सो रहे दोनों, ये गधे के साइज के कुत्ते बाप रे बाप! इसे काट लिया हमारे पीछे में तो?"
"तू भी न, चल छोड़, मीकू हम अभी थोड़ी देर में आते हैं" पापा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और दोनों निकल गये।
मीकू ने दरवाजा बंद किया और अपने कमरे में बैठ टीवी देखने लगा। उसके फेवरेट कार्टून सीरियल आ रहे थे। थोड़ी देर बाद उसे भूख लगने लगी। वह रसोई से पराँठे ले आया और खाने लगा। तभी उसे घर के पिछले हिस्से से कुछ आहट सुनाई दी। उसने टीवी म्यूट किया और कान उधर लगा दिये। तुरंत ही एक और आवाज आई कुछ गिरने की। वह समझ गया कि कुछ है वहाँ। झट से बचे पराँठे प्लेट में छोड़ उस ओर सावधानी से बढ़ा। पहुँचते दिल धक्क से कर गया। एक अनजान आदमी दीवार से उतरने की कोशिश में था और दूसरा जो कि उतर चुका था, उसकी सहायता कर रहा था। पीछे की थोड़ी सी जमीन मम्मी ने फूल-पौधे लगाने के लिए खाली छुड़वा रखी थी जिसके चारों ओर सात फीट ऊँची दीवारें बनी थी। इनलोगों ने उसी हिस्से का उपयोग अंदर घुसने के लिए कर डाला था। घबराहट में अचानक मीकू का हाथ पास रखी कुर्सी से लगा और दोनों चौंक उठे। एक ने दौड़ के उसे पकड़ लिया।
"ए तूने तो कहा था कि सारे लोग निकल गये हैं अभी फिर ये डेढ़फुटिया यहाँ कैसे?" उसने अपने दूसरे साथी से गुस्से में कहा
"अबे तो मैं क्या एक-एक को गिनता रहूँ? पति-पत्नी दोनों को जाते देखा तो बता दिया और इत्ते से लड़के से डरता है तू! अच्छा ही हमें मिल गया ये, कीमती सामान खोजने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी अब" दूसरा क्रूरता से दाँत दिखाते हुए बोला फिर दोनों हँसने लगे। मीकू ने वहीं टँगी दीवार घड़ी को देखा। साढ़े नौ बज रहे थे। बाहर झींगुरों के बोलने की आवाजों से रात का समय और भी भयावह लगने लगा था। उसे बहुत डर लगने लगा लेकिन वो समझ रहा था कि डरने-घबराने से काम नहीं चलनेवाला। शादियों का सीजन होने के कारण आसपास के ज्यादातर घरों में भी ताले लटके थे सो चिल्लाने का भी कोई फायदा नहीं होना था और मम्मी-पापा के मोबाइल पर फोन वे बदमाश करने नहीं देते। दोनों उसे पकड़े अंदर आ गये।
"ओय बच्चे, पापा रुपये किधर रखते?" एक ने कड़क के पूछा। वह चुप रहा। "बोलता है या?" दूसरा गुस्से से लाल-पीला होता हुआ उसपर चाकू तान उठा"
"उ...उस अलमारी में" रुँआसे मीकू ने कोने में रखी अलमारी की ओर इशारा कर दिया। दोनों ताला तोड़ने में जुट गये। कोने में सिसकते मीकू का दिमाग तेजी से इनको रोकने का कोई उपाय सोच रहा था। अचानक से उसका ध्यान उस कमरे की ओर गया जिसमें हैप्पी, जो-जो सो रहे थे और उसके चेहरेपर मुस्कान नाच उठी। अबतक दोनों ने अलमारी खोल ली थी और अपने जरूरत की चीजें बैग में भर रहे थे कि तभी मीकू ने टोका,
"अंकल-अंकल सॉरी, पैसे उसमें नहीं इस कमरे में हैं जिसमें मम्मी अपने गहने रखती, आपलोग नाराज मत होना, मैं भूल गया था" वह और ज्यादा डरे होने का नाटक करता बोला,
"तेरी तो, इतनी मेहनत करा दी" चाकूवाले लुटेरे ने झल्ला के उसे डाँटा और जल्दी से उस कमरे की कुंडी खोल दी। दरवाजा खुलने की खट-पट सुनते ही हैप्पी और जोजो जाग गये और उनपर टूट पड़े। बेचारे चोर उन भारी-भरकम कुत्तों के आगे पूरी तरह बेबस थे। चाकू हाथ से छूट गिर पड़ा। उन्हें बौखलाहट के मारे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। मीकू दौड़ के बाहर भागा और सड़क के पार कुछ दुकानें थीं, वहाँ आकर शोर मचा दिया। लाठी-डंडों से लैस लोग उसके साथ भागे आये और लुटेरों को मार-मार के वहीं पस्त कर दिया। हैप्पी, जोजो ने काट-काट के आधा तो उनको बेहाल पहले से ही कर रखा था। एक परिचित दुकानदार ने मीकू के पापा को फोन कर दिया। वे लोग तुरंत लौट आये। मम्मी की गोद में बैठे मीकू पर तारीफों की बरसात हो रही थी और लुटेरे पुलिस जीप में मुँह लटकाए थाने की ओर रवाना हो चुके थे। (समाप्त)
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