कालचक्र के नूतन नर्तन
स्वीकारो अभिनंदन
आशाओं का वृक्ष खड़ा है
उसे सींचते रहना
खारापन छलके नयनों से
बात नहीं वो कहना
नित्य सुगंधित करना मन को
जैसे वन में चंदन
चंदा से जब-जब मधु टपके
कुछ बूँदें ले आना
भोर सुहानी दिन शुभ कर दे
ऐसे गीत सुनाना
सदा प्रेरणा देते रहना
कर्मों का हो वंदन
मौन निगलने बैठा सबकुछ
दाल न गलने देना
किसी कुशल माँझी के जैसे
जीवन-नौका खेना
हो क्षण-क्षण चैतन्य, सुनहरा
प्रेमभाव का स्पंदन
स्वीकारो अभिनंदन
आशाओं का वृक्ष खड़ा है
उसे सींचते रहना
खारापन छलके नयनों से
बात नहीं वो कहना
नित्य सुगंधित करना मन को
जैसे वन में चंदन
चंदा से जब-जब मधु टपके
कुछ बूँदें ले आना
भोर सुहानी दिन शुभ कर दे
ऐसे गीत सुनाना
सदा प्रेरणा देते रहना
कर्मों का हो वंदन
मौन निगलने बैठा सबकुछ
दाल न गलने देना
किसी कुशल माँझी के जैसे
जीवन-नौका खेना
हो क्षण-क्षण चैतन्य, सुनहरा
प्रेमभाव का स्पंदन
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