मंगलवार, 17 जुलाई 2018

जनता की तकदीर

तुमको प्यारा है गगन, मुझको मेरा नीड़।
इस रिश्ते को देखना, खा जाएगी भीड़॥

नेताजी ने दी बदल, जनता की तकदीर।
भैंसा देकर बोलते, दूहो जीभर क्षीर॥

"जेल" शब्द ही संक्रमित, कहते दृश्य तमाम।
सुनते नेताजी कहें, मुझको दस्त, जुकाम॥

जहाँ प्रेम का संग था, दीखे दृश्य सुखांत।
एकाकीपन को मिला पुनः मौन, एकांत॥

असंतुष्ट ही दीखता, जबकि उड़े हर रोज।
जाने किस आकाश की, उसको रहती खोज॥

पर्वत-नदी समान है, अपनी ये तकदीर।
तुम बहती हो रात-दिन, मैं धरता हूँ धीर॥

यादों की खुरपी लिए, मन मत पुनः कुरेद।
कर देगी इक भूल फिर, अश्रु-द्वार में छेद॥

सींच पुराने को सकें, इसमें ही असमर्थ।
वृक्ष नये संबंध के, लगा रहे क्यों व्यर्थ॥

सार्वजनिक कोई चमन, जितना हो अभिराम।
घर के गमले-पुष्प ही, आते अपने काम॥

खबरें मेरे काम की, बतलाते दिन-रैन।
बूझें-बूझें कौन वे? अजी! आपके नैन॥

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