माहिया छंद
(1)
होठों को अब खोलें
सावन आया है
हम भी उपवन हो लें
(2)
नदिया उफनाई है
सावन ने बाँटी
सबको तरुणाई है
(3)
हरियाली कर देगी
प्रीत घटाओं से
अब-तब में बरसेगी
(4)
बिजली यदि कड़के तो
मुझमें छिप जाना
चिनगारी भड़के तो
(5)
सावन में मिल जाओ
गीत मुझे लिखने
बूँदों में खिल जाओ
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