मंगलवार, 17 जुलाई 2018

दो मन सपने

दो मन सपने सिर पर लादे
किस पथ चैन मिले!

धूप आज भी सोने जैसी
चाँदी जैसी चाँदनी
नहीं अगर कुछ है तो "टाइम"
भटकी जीवन-मापनी
ऐसे में क्यों न सूखा दिन
प्यासी रैन मिले!

खोज रहे आँगन होटल में
हुई पहेली सोच है
छिलका बन जाती मर्यादा
दीखे यदि उत्कोच है
फिर पछताकर रोने वाले
अनगिन नैन मिले

आज समर्पण रीति बुढ़ाई
अलग-अलग अस्तित्व सब
माला जपते अधिकारों की
बिसराये दायित्व सब
तुम्हीं कहो सुनने को कैसे
सुखमय बैन मिले!

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