सोमवार, 23 जुलाई 2018

चोट (लघुकथा)

प्रेम को समर्पित अपने एक और काव्य संकलन के लिए पुरस्कार जीतकर गर्वित मन से घर लौट रही युवा लेखिका रागिनी का मन गोलगप्पे का स्टॉल देख फिर ललचा उठा और उसने गाड़ी झट से रोक दी,

"पाँच रुपये के देना" पर्स सम्हालते हुए कहा ही था कि तभी वहाँ पहले से खड़े किसी से निगाहें मिल गयीं। सुधीर! उसका पूर्व पति! अचानक से बीती बातें नजरों के आगे कौंधने लगीं लेकिन तुरंत उन्हें झटक के गोलगप्पे का प्लेट थाम लिया। पहला गोलगप्पा मुँह में डालते हुए पूछ बैठी ठेलेवाले से,

"भैया, तारा आकाश से टूट कर क्या पाता होगा?" आवाज में व्यंजना स्पष्ट थी। हकबकाए ठेलेवाले को पैसे देते हुए भावार्थ समझ चुका सुधीर मुस्कुरा उठा,

"भाई, किसी के आकाश का एक तारा बन के जीने से किसी का आकाश बन जाना ज्यादा सुखद है न!"

सुधीर की बाइक को जाते देख रहे ठेलेवाले के चेहरे पर आश्चर्य गहरा चुका था और रागिनी की आँखों में आहत हुआ अहंकार...

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