सोमवार, 23 जुलाई 2018

चॉकलेट (लघुकथा)

बैंक मैनेजर सिन्हा साहब के दोनों बच्चे बरामदे में बैठे पेंटिंग बना रहे थे कि कैशियर किशोरी बाबू का आना हुआ,

"कैसे हो बेटा"

"ठीक हैं अंकल" बड़ेवाले ने जवाब दिया।

"पापा हैं घर पर?"

"नहीं, यहीं कहीं गये हैं, अभी आ जाएँगे"

"ठीक है, जरा अखबार देना" कहते हुए किशोरी जी अंदर अतिथि कक्ष में जाकर बैठ गये।

"भैया, अंकल ने चॉकलेट नहीं दी?" अखबार देकर खाली हाथ लौटे बड़े से छोटे ने पूछा,

बड़े ने जल्दी से उसे धीरे बोलने का इशारा किया,

"अरे पापा को आने दे न, देखता नहीं अंकल उनके सामने ही देते हैं चॉकलेट हमेशा"

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