रात को दीनू काका घर से खाना खाकर हाथ में लालटेन लिए वापस अपने आमों के बाग की ओर बढ़ चले। आखिर इस साल खूब आम जो लगे थे, रखवाली करना जरूरी था। वे अभी आधे रास्ते तक ही पहुँचे थे कि उन्हें कोई प्रकाश का गोला अपने सिर के ऊपर से उड़ के निकलता हुआ दिखाई दिया। वे चौंक के उसकी ओर देखने लगे लेकिन वह आगे जाकर अदृश्य हो चुका था। घबराहट के मारे दीनू काका ने अपनी चाल तेज कर दी। वे जल्दी बाग में पहुँच जाना चाहते थे और ऐसा हुआ भी लेकिन ये क्या? बाग में पहुँचते ही उनके होश उड़ गये। सामने दिखाई दे रहे सारे पेड़ों से आम गायब थे। दीनू काका हड़बड़ाकर अंदर के पेड़ों की तरफ भागे तो देखा कि उनमें आम अभी लगे हुए थे। तभी अचानक वही प्रकाश का गोला फिर से उनके सामने आकाश में चमका और देखते ही देखते बचे हुए पेड़ों से भी आम गायब होने लगे। दीनू काका ने डर कर अपनी लालटेन को पास झाड़ियों में छिपा दिया और खुद भी वहाँ रखी ईंटों के बीच छिप के बैठ गये। थोड़ी ही देर में हर पेड़ से आम गायब हो चुके थे। प्रकाश का गोला वहीं ऊपर आसमान में ठहरा हुआ था। दीनू काका को डर तो बहुत लग रहा था किन्तु अपनी मेहनत को इस तरह चुराया जाता देख उनका मन गुस्से से भी भर उठा था। उन्होंने सोचा कि यदि सारे आम चोरी हो ही चुके हैं तो वैसे भी गरीबी और कर्जे में डूबकर मरना ही तो क्यों न इस चोर से लड़ते हुए मरें? ये भी तो हो सकता है कि चोर पकड़ा ही जाए। मन में यही निश्चय कर उन्होंने अपनी लालटेन उस प्रकाश के गोले की ओर दे मारी। निशाना बिल्कुल सही लगा। लालटेन गोले से टकराया और गोला नीचे उतरने लगा। जमीन का स्पर्श पाते ही गोले की चमक खत्म हो गयी। दीनू काका ने देखा कि वह एक छोटा सा रथ था जिसके पिछले हिस्से में लालटेन के टकराने से आग लग चुकी थी। तभी रथ से एक भयानक चेहरे वाला बौना उतर कर बाहर आया,
"किसने? किसने जादूगर तंबाटा के रथ को रोकने का साहस किया है?" वह गरजा।
दीनू काका सामने आये,
"मैंने तुझे रोका है दुष्ट, कौन है तू जो मेरे बाग के सारे आम चुराकर ले जाना चाहता है?"
"हाहाहा" जादूगर जोर से हँस पड़ा "बूढ़े माली, तुझे क्या अपना जीवन इतना भारी लगने लगा जो मरने के लिए मेरे सामने आ गया?"
इतना कहते ही उसने अपना हाथ रथ के जलते हिस्से की ओर किया। एक किरण हथेली से निकली और आग को बुझा दिया। दीनू काका की आँखें फटी की फटी रह गयीं। तंबाटा का अगला निशाना दीनू काका थे। उसने हाथ आसमान की ओर उठा कर कोई मंत्र पढ़ा और एक आग का गोला उसके हाथ में प्रकट हो गया। उसने वह दीनू काका की ओर दे मारा। दीनू काका एक ओर हट गये। तंबाटा ने दो-चार बार और प्रहार किये लेकिन हर बार दीनू काका ने स्वयं को बचा लिया। अब उन्होंने ध्यान दिया कि तंबाटा ने एक ब्रेसलेट पहन रखा था जो उसके हर मंत्र पढ़ने के समय चमकने लगता था। वे तुरंत समझ गये कि हो न हो इस जादूगर की शक्तियों का राज यही ब्रेसलेट है। उन्होंने कुछ सोचा और एक पेड़ की ओट में छिप गये। तंबाटा उन्हें छिपते देख जोर से हँसा,
"हाहाहा मूर्ख, तू समझता है कि मुझसे छिप सकेगा?"
और वह उस पेड़ की तरफ बढ़ा लेकिन तब तक दीनू काका उसकी दृष्टि से बचते हुए दूसरे पेड़ की ओर जा चुके थे। जादूगर उन्हें वहाँ न पाकर आसपास देखने लगा। तभी मौका देखकर दीनू काका ने एक पत्थर का टुकड़ा उसके ब्रेसलेट पर दे मारा। जादूगर चौंक पड़ा लेकिन ब्रेसलेट की नग टूट चुकी थी। वह गुस्से से पागल हो गया,
"नहीं-नहीं दुष्ट बूढ़े, तूने ये क्या किया? मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा"
कहता हुआ वह उनकी ओर झपटा। दीनू काका को अब पूरा भरोसा हो गया कि सारा जादू उस ब्रेसलेट में ही था और अब उसके टूट जाने के बाद तंबाटा एक साधारण मनुष्य ही रह गया है सो उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया। जवानी के दिनों में उन्होंने लाठी के खेल में खूब नाम कमाया था। वे दिन उन्हें याद आ गये। बाग के हर हिस्से में उन्होंने लाठियाँ ऐसे ही किसी संकट के समय के लिए छिपा रखी थीं जो आज काम आ गयी। अपनी सारी ताकत बटोर के उन्होंने पास की झाड़ी से एक लाठी निकाली और तंबाटा से भिड़ गये। किसी बूढ़े से ऐसे आक्रमण की आशा भी तंबाटा को नहीं थी। वह भौंचक्का रह गया। लाठी के दो-तीन जोरदार वार उसके सिर पर लगे और उसे दुनिया घूमती नजर आने लगी। वह वहीं गिर पड़ा। दीनू काका ने अपने गमछे को बीच से फाड़ा और उसके हाथ-पैर कस के बाँध दिये और शोर मचा दिया। लोग इकठ्ठे हो गये। दीनू काका ने जब सारी बातें बताईं तो सबने उनकी हिम्मत और बुद्धिमानी की बहुत प्रशंसा की। अगले दिन राजदरबार में जादूगर को बंदी बना कर लाया गया। वहाँ उसने बताया कि पड़ोसी शत्रु राज्य के राजा ने उसे भेजा था। उसका उद्देश्य इस राज्य के सारे बाग-बगीचे और खेतों से धीरे-धीरे फलों और अनाजों को नष्ट करते जाना था जिससे अकाल की स्थिति उत्पन्न की जा सके। इसके बाद वह संसाधनों की कमी से जूझ रहे राज्य पर हमला कर उसे आसानी से जीत लेता और आधा हिस्सा तंबाटा के नाम कर देता लेकिन दुर्भाग्य से योजना का पहला चरण ही दीनू काका के कारण ही अंतिम चरण में परिवर्तित हो गया।
राजा ने तंबाटा को बीस वर्षों के सश्रम कारावास की सजा सुनाकर कारागार में भिजवा दिया।
"आपके आमों की दुगनी कीमत हम राजकोष से चुका देंगे दीनू काका" राजा के चेहरेपर मुस्कुराहट थी
दरबार दीनू काका और राजा की जय-जयकारों से गूँज रहा था (समाप्त)
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