बाला-बाली, दोनों भाई-बहन आज फिर नाश्ते की टेबल पर मुँह फुलाए बैठे थे।
"मम्मी, तुमको कितनीबार कहा है कि हमें समोसे पसंद हैं"
"अरे बेटी रोज समोसे नहीं खाए जाते, रोटी खाओ आज"
अखबार पढ़ रहे पापा ने हस्तक्षेप किया,
"बना क्यों नहीं दिए समोसे ही?"
"तीन दिनों से लगातार समोसा ही नाश्ते में बन रहा, बीमार पड़ जाएगा सारा घर"
पापा को भी बात सही लगी। उन्होंने दोनों को समझाया,
"आज रोटी खा लो, मम्मी कल फिर समोसा बना देगी हाहा"
दोनों ने मुँह बनाते हुए जैसे-तैसे दो-दो रोटियाँ खायीं और अपने कमरे में जाकर बैठ गये। बाली बोला,
"दीदी, कितना अच्छा रोज चारों समय हमें समोसे मिलते"
"हाँ रे लेकिन कैसे मिलें?"
तभी उन्हें एक मीठी आवाज सुनाई दी,
"मिल जाएँगे"
वे आसपास देखने लगे।
"ये कौन बोला?" बाली ने कहा।
आवाज फिर आयी
"यहाँ ऊपर देखो"
उन्होंने देखा कि रोशनदान के पास एक बिल्कुल चिड़िया जितनी छोटी परी हवा में ठहरी हुई थी। दोनों किसी परी को सामने देख के खुश भी हुए और थोड़ा डर भी गये। बाला ने पूछा,
"तुम कौन हो?"
"मैं समोसापुर की रानी समोसिका हूँ। हमारे यहाँ तुम जितने चाहो उतने समोसे खा सकते हो"
"मगर कैसे?"
"तुमको मेरे साथ चलना होगा"
बाली झट से तैयार हो गया,
"दीदी, चलो न इसके साथ"
थोड़े असमंजस के साथ बाला ने भी हामी भर दी,
"ठीक है समोसिका, हम तुम्हारे साथ चलेंगे"
समोसिका ने अपनी जादुई छड़ी घुमाई और एक सुंदर दर्पण प्रकट हो गया। इसके बाद उसने बच्चों से उस दर्पण को छूने के लिए कहा,
"इसे छुओ"
बच्चों ने जैसे ही उसे छुआ, वे उसमें समा गये। उसके दूसरी ओर बाहर निकलने पर उन्होंने अपनेआप को एक विचित्र संसार में पाया जहाँ सभी घरों का आकार समोसे जैसा था। सड़क के दोनों तरफ आदमकद समोसे सजे थे और तो और पेड़ों पर भी फलों की बजाए समोसे लगे थे तथा फव्वारों से पानी की जगह समोसे ही निकल रहे थे। समोसिका मुस्कुराती हुई बोली,
"समोसापुर में तुम्हारा स्वागत है बच्चों"
दोनों बहुत खुश हुए। समोसिका उन्हें लेकर अपने राजमहल आयी। राजसी भोजनालय में उनको बिठाकर उसने जादू की छड़ी को फिर से घुमाया। दो प्लेट समोसे चटनी और प्याज के साथ प्रकट हो गये,
"तुमलोग खाओ, मैं अभी आयी"
और वह अदृश्य हो गयी। दोनों खुशी-खुशी खाने लगे लेकिन थे तो वे बच्चे ही! सो तीन-चार समोसों में ही उनका पेट भर गया। उन्होंने प्लेटें एक तरफ सरका दीं,
"दीदी, अब घर चला जाए"
"हाँ रे, वो परी कहाँ चली गयी लेकिन?"
वे बातें कर ही रहे थे कि अचानक उन प्लेटों में रखे समोसे उठकर खड़े हो गये। उनमें से एक बोला
"अरे! केवल दो-चार समोसे खाए! हमें भी खाओ"
बाला और बाली का तो अब डर के मारे बुरा हाल हो गया। बाली तो बाला से लिपट के चीख पड़ा,
"दीदीऽऽ बचाओ, जिंदा समोसे!"
दोनों कमरे से निकल के बाहर भागे लेकिन वहाँ खड़े कुछ आदमकद समोसों ने उन्हें पकड़ लिया और "परी-परी" चिल्लाने लगे। परी तुरंत प्रकट हुई। उसका अब तक शांत और सुंदर दिख रहा चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था।
"तुमलोगों ने सिर्फ दो-चार समोसे खाकर भागने की कोशिश क्यों की?"
बाला ने हिम्मत जुटाकर जवाब दिया,
"जितनी पेट में जगह, उतना ही खाएँगे न!"
"नहीं, यहाँ एकबार में जितना भी मिले उसे खत्म करना होता है"
"ठीक है, अगलीबार ध्यान रखेंगे, अब हमें घर पहुँचा दो"
यह सुनते ही सारे समोसे हँसने लगे और बोले,
"यहाँ जो भी मानव आता है, वापस नहीं जाता"
अब तो दोनों रोने लगे। परी उनको डाँट के बोली,
"यहाँ का ये नियम है, तुमलोग जबतक समोसे खाते रहोगे, आजाद रहोगे पर जिस दिन तुम्हारा मन भरा उसी दिन से तुमलोग गुलाम"
"हाँ और तब तुमको यहाँ समोसे बनाने होंगे" एक समोसे ने कहा।
बाली तो जोर-जोर से रोने लगा लेकिन बाला का दिमाग तेजी से काम कर रहा था। उसने परी से कहा,
"हम यहाँ रहने को तैयार हैं, बस एक इच्छा पूरी कर दो"
"वो क्या?"
"हमें दुबारा वो दर्पण दिखा दो जिससे हम यहाँ आए थे"
परी राजी हो गयी। उसने फिर से अपनी छड़ी घुमाकर उस दर्पण को प्रकट किया। तभी बाला ने कहा,
"अरे, इसमें तो कुछ चिपका हुआ है"
"कहाँ?"
बाला ने बाली का हाथ पकड़ा और दर्पण के पास जाकर बोली,
"यहाँ"
और उसने दर्पण को छू दिया। बस फिर क्या था? वे दर्पण में समाकर वापस अपने घर के कमरे में आ गये। बाला ने जल्दी से टेबल पर रखा पेपरवेट उठाया और दर्पण पर दे मारा। वह टूट के बिखर गया।
"अब वो परी यहाँ नहीं आ पाएगी, बस मम्मी को कुछ बताना मत" बाला ने बाली के आँसू पोंछते हुए कहा। वह भी खुश हो गया। तभी मम्मी कमरे में आयी,
"अरे तुमलोग कहाँ भाग गये थे? लो खाना खाओ, सुबह भी नाश्ता ठीक से नहीं किया"
मम्मी ने अखबार से ढँकी हुई थाली उनके सामने रखी। बाली ने पूछा,
"ये ढँक के क्यों लायी माँ?"
"खोल कर तो देखो"
बाला ने अखबार हटाया। प्लेट भर के समोसे थे। वे दोनों तो डर के मारे उछल पड़े,
"ईऽऽऽ हटाओ इन्हें, हमें समोसे नहीं खाने"
और वहाँ से भाग गये। मम्मी हैरानी से उन्हें भागता देख रही थी (समाप्त)
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, तस्मै श्री गुरुवे नमः - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार मित्रवर, स्नेह बना रहे :)
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार सर :)
हटाएंबहुत अच्छी लगी कहानी
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार मैम :)
हटाएंbahut achchhi balkahani
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक स्वागत मैम, सादर आभार :)
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