शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

समझदार सलोनी (बाल कहानी) | Kids story in hindi


सलोनी का ढाबा पूरे चमचमपुर में मशहूर था। दिन-रात खुला रहता और लोग आते रहते। ढाबे के सामने ही घना जंगल था जिससे वह इलाका थोड़ा सुनसान लगता लेकिन सलोनी के हाथ की बनी तड़का दाल, रोटी और सब्जियों का स्वाद ऐसा कि चमचमपुर के महाराज भी खुद को रोक नहीं पाते। उनका आना-जाना बराबर सलोनी के ढाबे में लगा रहता था। यहाँ तक कि रात को जब वे अपनी राजकीय व्यवस्थाओं का गुप्त निरीक्षण करने वेश बदलकर निकलते तो खाना सलोनी के ढाबे पर ही खाते। उन्होंने सलोनी को अपनी बेटी सा मानना शुरू कर दिया था। सलोनी का पति सच्चामल भी बहुत सीधा व्यक्ति था। दिनभर सलोनी का हाथ बँटाता। दोनों पति-पत्नी बहुत प्यार से रहते थे। ऐसे ही उनके दिन हँसते-खेलते गुजर रहे थे।

एक रात फिर से महाराज का वहाँ आना तय हुआ। सलोनी ने उनके लिए मक्खन लगी रोटी, तड़का दाल और कटहल का कोफ्ता बनाया था। महाराज नियत समय पर सेनापति के साथ वहाँ पहुँचे। दोनों ने साधारण लोगों का वेश बनाया हुआ था। सलोनी ने उनको आदरसहित बिठाकर खाना परोसा। सच्चामल को आसपास न पाकर महाराज पूछ बैठे।

"बेटी, आज सच्चा बेटा दिखाई नहीं दे रहा"

सलोनी कुछ कहती इससे पहले ही एक लड़की अंदर से मिठाइयों की दो थालियाँ लिये निकली और बोली,

"महाराज, सच्चा भैया गाँव गये हैं, दो दिनों बाद लौटेंगे"

सेनापति ने उससे पूछा,

"तुम कौन हो बहन?"

"मैं सच्चा की बहन चुमकी हूँ, आज ही यहाँ आयी"

सलोनी ने मुस्कुरा के उसे देखा और सेनापति से कहा

"सेनापति जी, जब मैं छोटी थी तो सामनेवाले जंगल के बीचोंबीच सिपाही बनकर जाती थी, कोई चोर होता था वहाँ, बहुत मजा आता था उस खेल में"

महाराज हँस पड़े। सेनापति खाना खाता रहा। सलोनी उनके खाने का पूरा ध्यान रख रही थी। उसने फिर से कहा

"हम तो रास्ते से ही किसी को उठा लेते थे कईबार डाकू बन के हाहाहा"

महाराज भी राजकुमारी के बचपन के किस्से उसे सुनाने लगे,

"अरे बेटी, वह भी ऐसी ही थी, सारा दिन बदमाशी"

परंतु सेनापति खीज रहा था कि ये क्या अनाप-शनाप बोले जा रही। जैसे ही उनका खाना समाप्त होने को आया, सलोनी ने जोर से कहा,

"हाय! मिठाई तो जहर ही है मधुमेह के रोगियों के लिए"

महाराज ने हाँ में सिर हिलाया लेकिन सेनापति ऊब चुका था। वह हाथ धोने के लिए उठा कि उसका हाथ खाने की मेज से टकराया और उनकी जूठी थालियों के साथ मिठाइयों के बर्तन भी नीचे गिर पड़े।

"ओहह क्षमा करें महाराज"

"कोई बात नहीं सेनापति"

चुमकी बहुत दुखी हो गयी,

"महाराज, मैंने अपने हाथों से बनाया था आपके लिए, रुकिए और है, लेकर आती हूँ"

वह मिठाई लाने अंदर चली गयी। सेनापति बोला,

"महाराज, मैं जरा पास के एक व्यक्ति से मिल कर आता हूँ फिर मीठा साथ में ही खाएँगे, वैद्यराज ने आपको खाने के घंटे भर बाद ही मीठा लेने की सलाह दी है"

महाराज चौंक गये,

"वैद्यराज ने ऐसा कब कहा?"

"वे सुबह मुझसे मिले थे"

"अच्छा ठीक है, आप आइए अपना काम कर"

सेनापति चला गया। तभी चुमकी मिठाई लेकर आ गयी।

"लीजिए महाराज, अरे, सेनापति कहाँ गये?"

"अभी पास में कहीं गया है, आता ही होगा, तुम यहीं रख दो"

चुमकी ने अनमने भाव से बर्तन वहीं रखे और बैठ गयी। इधर-उधर की बातें होने लगीं। लगभग एक घंटा बीत गया। चुमकी बार-बार महाराज से मिठाई खाने को बोल रही थी।

"महाराज, इसपर मक्खियाँ लगने लगीं हैं, जल्दी से खा लीजिए न"

तभी एक कड़क आवाज गूँजी,

"मक्खियाँ तो लग चुकी हैं उसमें चुमकी, वह भी जहरीली"

सबने आवाज की ओर देखा। सेनापति खड़ा था। उसके साथ सिपाही भी थे जो चार लोगों को हथकड़ियाँ लगाए पकड़े हुए थे। पास में सच्चामल खड़ा मुस्कुरा रहा था। महाराज चौंक उठे।

"ये सब क्या है सेनापति जी?"

चुमकी अचानक उठी और भागने लगी लेकिन सिपाहियों ने उसको भी पकड़ लिया। सेनापति ने कहना शुरू किया

"महाराज, ये डाकू सामने के जंगल में छिपे थे तथा आपको और मुझे मारना चाहते थे, इन्होंने सच्चामल का अपहरण कर लिया था और अपनी साथिन चुमकी को सलोनी के साथ लगा दिया जिससे वह मिठाई में जहर मिलाके हमें खिला सके इसलिए मैंने बहाने से हमारी मिठाइयों की थालियाँ गिरा दी और आपको भी वैद्यराज की काल्पनिक बात बता के मिठाई खाने से मना कर दिया।"

"ये आपको कैसे पता लगा?" महाराज ने पूछा।

"महाराज, जब सलोनी ने बिना प्रसंग ही चोर, सिपाही, जंगल, किसी को उठा लेना आदि की बात करनी आरंभ की तभी मुझे संदेह हुआ कि वह कुछ कहना चाह रही है, मीठे को जहर से जोड़ने वाली उसकी बात ने मुझे अपने संदेह पर पक्का भरोसा करा दिया"

"लेकिन यह बात तो सलोनी सीधे ही हमसे कह सकती थी"

"नहीं महाराज क्योंकि इनमें से एक डाकू यहीं इसके ढाबे के पास खड़ा निगरानी कर रहा था कि कोई गड़बड़ न हो, कुछ भी गलत होते वह सीधे अपने साथियों को संकेत कर देता और वे सच्चामल को मार डालते"

"ओहह" महाराज चकित रह गये। "किन्तु इन डाकुओं को यह कैसे मालूम हुआ कि आज हमलोग यहाँ आनेवाले?"

सेनापति एक क्षण के लिए रुका फिर बोला,

"महाराज, यह सारा षड्यंत्र हमारे महामंत्री का था, इन डाकुओं ने खुद इसकी गवाही दी है, चलिए आपको महल में छोड़कर मैं महामंत्री के भवन पर छापा मारने जाऊँगा"

महाराज ने सलोनी के सिरपर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया तथा अपनी बहुमूल्य मोतियों की माला उसे पुरस्कार स्वरूप दे दी। सलोनी ने दौड़ के सच्चा का हाथ पकड़ा और उससे लिपट रोने लगी। उसका पति और देश, दोनों उसकी समझदारी से बच चुके थे (समाप्त)

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