"यार, तन्हा जिन्दगी से बढ़कर कुछ नहीं, खाओ, पीओ, मौज करो हाहाहा" शाम को पार्क में टहलते हुए राजेश फिर से अपनी मस्ती के मूड में आने लगा था।
"हाँ, चल तेरा जो मन बोला, तूने किया, शादी नहीं की, एन्जॉय" उसके दोस्त सौरभ ने भी हमेशा की तरह मुस्कुरा के जवाब दिया।
अचानक ऊपर से गुजरा हुआ बिजली का तार टूटा और उनपर आ गिरा। तेज झटके से दोनों दूर उछल गये और गिर के छटपटाने लगे।
पास ही बैठी सौरभ की पत्नी दौड़कर सौरभ के पास आयी और उसका सिर अपनी गोद में रखकर सँभालती हुई पानी पिलाने लगी। पास खड़ा पंद्रह साल का बेटा डॉक्टर को फोन कर रहा था।
बेहोश होने से पहले अपनी अधखुली आँखों से ये दृश्य देख रहे राजेश को "परिवार" की सार्थकता समझ आ चुकी थी......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें