सोमवार, 1 जनवरी 2018

दादी का कमरा (लघुकथा)

बचपन की धुन में मगन प्रज्ञा और पूर्वी फिर अखबार से टोपियाँ, नाव आदि बना रही थीं। दस साल की प्रज्ञा खुद से दो साल बड़ी पूर्वी की हर बात मानती थी। सारी खुराफात कर लेने के बाद पूर्वी ने लम्बी साँस ली और हमेशा की तरह प्रज्ञा से बोली,

"जाओ, ये सबकुछ दादी वाले रूम में रख दो"

प्रज्ञा ने सारा सामान उठाया और पूछा,

"दीदी, ये सब तो हम अपने कमरे में भी रख सकते न?"

पूर्वी ने उसे समझाया,

"अरे पागल, हमारे कमरे में मम्मी साफ-सफाई के नाम पर ये सब फेंक देगी, दादी के कमरे में तो कोई जाता नहीं!..."

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