शनिवार, 8 सितंबर 2018

अविजित... (कहानी)


रात के सन्नाटे गहरा चुके थे तभी उसकी आँखें खुल गयीं. घड़ी पर ताका तो सुइयाँ साढ़े बारह पर थीं. अपने आसपास देखा. कहीं कोई न था. वह उठ के बैठ गया. कुछ मिनट किसी बात पर विचार करने में गये. फिर उसने पास रखी टेबल की दराज से डायरी-कलम निकाली और लिखना शुरू किया,

“ढाई आखरों, आज मैं बहुत खुश हूँ. बहुत-बहुत खुश! काश, तुम निराकार न होते और मैं तुम्हें इस पल गले लगा पाता! वैसे इसे कोई शिकायत मत समझना. तुमने तो खुद हजारों बार मुझे अपनी बाँहों में भरा है किसी न किसी रूप में. बस आज साक्षात तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही साकार देखने का जी कर रहा. खैर, कोई बात नहीं...”

लिखते-लिखते उसके चेहरे पर एक अनोखी संतुष्टि मुस्कुराने लगी थी. तभी उसे ध्यान आया कि वह पसीने से नहा चुका है! पंखा भी बंद था. बैठे-बैठे ही हाथ बढ़ाकर स्विच ऑन किया और दुबारा लिखने लगा,

“जानते हो जब-जब मैंने तुम्हारे उस खास रूप के प्रति गुस्सा दिखाया, वो क्यों दिखाया? क्योंकि तब तक मैंने पूरी तरह से तुमको समझा नहीं था. तुम्हारा वो खास रूप मुझे...समझ रहे न किस खास रूप की बात कर रहा? अरे वही तूलिका! मेरे पड़ोस की लड़की! हाँ तो अब आगे सुनो...”

उसके हाथ तेजी से पन्नों पर चलते जा रहे थे.

“तूलिका ने ही मुझे पहलीबार तुम्हारे उस रूप की अनुभूति कराई जो मेरे माँ-बाप, भाई-बहनों में देखे तुम्हारे ढंग से कुछ अलगवाला था. हाहाहा, अलग वाला यानि वही! जिसको आमतौर पर युवा मन प्यार कहता! प्यार तो माँ-बाप से भी मिलता है मगर फिर भी तुम तो तुम हो! जब तक अपनी सभी भूमिकाओं में नहीं मिल जाते, इन्सान के दिल को चैन कहाँ! तो तूलिका ने ही मुझे तुम्हारे उस अलग भाव को महसूस कराया. हाँ, ये और बात थी कि वो आगे चल के बदल गयी...”

इस पंक्ति को लिखते समय उसका चेहरा थोडा उदास हो उठा लेकिन वो लिखता रहा,
“हाँ लेकिन गलती मेरी ही थी, ये बात मैं पहले भी कई बार स्वीकार कर चुका हूँ और आज फिर कर रहा. तूलिका ने जिस दिन मुझसे कहा कि वो आगे से सिर्फ मेरी अच्छी दोस्त बन के रहेगी, मैं उसका मतलब समझ के टूट गया था. उस समय की मेरी यही मानसिकता थी. मैंने तुम्हारा अर्थ संकुचित कर लिया था, बाँध लिया था. मैं तुमको अपनी मुट्ठी में भरना चाहता था और तुम ठहरे आजाद परिंदे जो कैद होते ही मर जाता है. एक हवा का झोंका जिससे जिया जाता है लेकिन हमेशा के लिए जकड़ा नहीं जा सकता. उस समय मेरे नाम ने मेरी सहायता की. अविजित, मैंने सोचा कि मेरे माँ-बाप ने मेरा ये नाम क्या सोच के रखा होगा? वे यही चाहते होंगे न कि मैं जिंदगी में कभी हार का मुँह न देखूँ! सदा अविजित रहूँ! मैंने तय कर लिया कि मैं नहीं हारूँगा, कभी नहीं. तूलिका ने मुझे ठुकरा दिया लेकिन फिर भी मैंने उसमें तुमको देखना छोड़ा नहीं. मैंने कहो तो उस समय तुम्हारे खिलाफ ही, मतलब तुम्हारे उस रूप के खिलाफ ही जंग का ऐलान कर दिया था. तुम कितने अच्छे हो. तुमने खुद ही मेरी मदद भी की कई सारे अलग-अलग रूपों में आकर. सबसे बड़ा रूप तो वही था, मेरे माँ-बाप का. उसके अलावा तुम उस सलाहकार के रूप में सामने आये जिसने मुझे शेयर ब्रोकर का काम करने को कहा. तुम उन ग्राहकों के रूप में भी सामने आये जिन्होंने मुझ अनजान आदमी पर भरोसा किया”

इतना लिख वो थोडा रुका और कलाई की मालिश कर कुछ घूँट पानी के पिए और फिर जुट गया,

“तुम उस दिन भी बहुत खुश थे जब मैंने अपने बैंक अकाउंट में करोड़ रुपये जमा देखे, तुम उस दिन भी नाच उठे थे जब तुम्हारा वो रूप जिसका नाम तूलिका था, उसके पति के घर से बड़ा घर मैंने शहर में खरीद लिया. मैंने उस दिन सचमुच अपनेआप को अविजित अनुभव किया था. मुझे खुशी थी कि मैंने उस लड़की को हरा दिया जिसने मुझे छोटा समझ के हराया था. बस मजे की बात यही रही कि इस जीत के बाद भी मैंने तुम्हारे उस खास रूप को और किसी में नहीं देखा या कहो तो देख ही नहीं पाया. तूलिका का स्थान जस का तस मेरे दिल में वही का वही था...बस मैं अविजित बना रहा...”

आँसू की कुछ बूँदें उसकी आँखों से कागज पर टपक के गिरीं लेकिन हाथ चलते रहे.

“मुझे दोनों के लिए खुशी थी, अपने लिए भी और तूलिका के लिए भी...मैंने उसको जवाब भी दे दिया खुद को साबित कर के और वो अपने घर-परिवार में सुखी थी, इस बात का चैन भी बना रहा. तुम तो जानते हो कि मैंने कभी उसकी जिंदगी में दखल नहीं दिया. मैं अपनी जिंदगी में खो गया. तुम मेरे चारों ओर थे. मैंने तुम्हें समझ लिया था, तुम्हारे किसी एक रूप पर निर्भरता खत्म हो गयी मेरी. मैंने तुमको जीना शुरू किया. हर किसी का दुख मुझे अपना दुश्मन लगने लगा. मैंने जहाँ तक हो सका, तुम्हें फैलाने की कोशिश की, तुमको जितना फैलाया, उतना ही तुम मेरे अन्दर बढ़ते गये”
वो जैसे किसी धुन में कलम चलाये जा रहा था.

“उस दिन भी तुमने ही मुझे सम्हाला जब मेरे दिल में छेद होने की बात डॉक्टर ने बताई. मुझे तब बहुत हँसी आई थी कि देखो, छेद तो तुमने कब का कर दिया था दिल में तूलिका के रूप में आकर और आज किसी डॉक्टर ने ये बात बता दी तो मेरे घरवालों के रूप में रोने लगे! वाह रे तेरा खेल ढाई अक्षरों! हाहाहा”

इन पंक्तियों के लिखे जाते ही जैसे कमरा अचानक चीख उठा कि मैं अस्पताल हूँ और तू रोगी! आराम कर वर्ना डॉक्टर्स जो इतनी सारी सुइयाँ तेरे अंगों में घुसा के गये हैं, खून देने लगेंगी! लेकिन वो रुका नहीं. स्याही बहती रही,

“मैंने उस दिन फिर जीत हासिल की, किस्मत ने मुझे बता दिया कि मैं अविजित हूँ...मैं किसी को बीच रस्ते अकेला छोड़ने का कलंक लेकर नहीं जाउँगा...मुझे बहुत ज्यादा खुशी हो रही थी कि अच्छा हुआ जो तूलिका मुझे ठुकरा के चली गयी. कम से कम इतनी जल्दी उसे अकेला तो नहीं होना पड़ेगा! उसकी शादी के अभी सिर्फ दस साल ही हुए हैं और मेरी चला-चली की बेला...अ...आने....ल...”

उसके हाथ अचानक थरथराने लगे. शब्दों के मोती टूट गये थे. कोहनी से टकरा नीचे गिरे पानी के जग ने बाहर खड़ी नर्स को उसकी लापरवाही बता दी थी. वह उसे सम्हालती हुई डॉक्टर-डॉक्टर चिल्लाने लगी लेकिन तब तक सब कुछ शांत हो चुका था. बाकी थे तो बस ढाई अक्षरों के अदृश्य झरते आँसू...(समाप्त).


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