सोमवार, 3 सितंबर 2018

क्षतिपूर्ति (कहानी)


रात के आठ बजने को थे. अपने एनजीओ से घर लौट रही तारिका आज फिर उदास थी. कारण वही, छोटे भाई अंकित का अवसाद पूर्ण जीवन और शराब में डूबते उसके सपने. कितना समझाया घर से बाहर तक सबने कि क्यों वैसी लड़की के लिए दुख मनाना जो खुद ही उसे छोड़ के चली गयी? लेकिन वो तो जैसे किसी की न सुनने की कसम खा चुका था.

निरुद्देश्य आँखों से कार की खिड़की से बाहर देखती तारिका पीछे छूटते जा रहे दृश्यों से भी ज्यादा तेज गति से अपने विचारों को मन में चलायमान किये हुई थी. ड्राइवर की आवाज से तन्द्रा टूटी,

“मैडम, घर पहुँचने ही वाले हम...”

एक लम्बी साँस के साथ अपने बैग और पानी की बोतल के साथ मानों वह खुद को भी समेटने लगी. कार घर के कंपाउंड में दाखिल हो गयी. गेट पर पति के नाम के नीचे लिखा “जिलाधिकारी” पदनाम देख उसका ध्यान हमेशा अपनी जिम्मेदारियों की ओर लौट आता था, चाहे थकान जितनी भी हो लेकिन आज मानसिक तनाव बहुत ज्यादा हो रहा था. सो अन्दर जाकर सोफे पर निढाल हो गयी तभी किसी कर्मचारी ने बताया, 

“मैडम, दो लोग आपसे मिलना चाहते हैं”

“कौन हैं?”

“जी मेरे एक रिश्तेदार के पहचान वाले हैं,...बैंक से लोन लेना इनको लेकिन मैनेजर परेशान कर रहा सो उसी सिलसिले में कुछ पैरवी-सिफारिश कराने के उद्देश्य से आये हुए! ये आपलोगों को नहीं जानते थे, मैंने ही सलाह दी साहब से मिलने की लेकिन वो आज हैं नहीं सो मैंने रोक लिया कि मैडम से ही बात कर लीजिएगा”

“न-न...भगाओ उनको...” तारिका ने अनमने ढंग से कहा, “आज एनजीओ में भी दिमाग खराब रहा और अब ये सिफारिश...”

“मैडम, वे सुबह से बैठे हुए हैं...बिना कुछ खाए-पिए...”

कर्मचारी डरते-डरते अनुनय के स्वर में बोला. तारिका ने बुरा सा मुँह बना के उसे देखा और सहमति में सिर हिला के उसे कॉफी बनाने के लिए कहा. वह चला गया. कुछ पल एसी में सुस्ताने के बाद तारिका उठी और बैठके की ओर चल पड़ी. उसने जैसे ही बैठके में पैर रखा, वहाँ बैठे दंपत्ति को देख जैसे उसे जोर का झटका लगा. विमल और सरिता! उसके पैर तेजी से पीछे हटते चले गये. दीवार से टिक के वह तेज-तेज साँसें लेने लगी.

कर्मचारी कॉफी लिए बैठके की तरफ ही जा रहा था. उसने उसे उस हालत में देखा तो अचम्भे से पूछा,

“मैडम, कॉफी कहाँ रख दूँ?”

“हँ...न...नहीं...” तारिका की आवाज लड़खड़ा सी गयी, “अभी नहीं पीनी कॉफी...त...तुम उनको कुछ खिलाओ...क्या खिलाओगे! हँ...हाँ, पावभाजी कैंटीन में बढ़िया मिलती न! वही दे देना...और कह देना कि दो दिनों के बाद ही आएँ”

कहती वह वापस अपने कमरे की ओर दौड़ पड़ी. कर्मचारी हैरत से उसे देखता रहा.

कमरे में आकर तारिका चुपचाप बिस्तर पर बैठ गयी. पति के बाहर रहने के कारण आज मिलने आने वालों की भीड़ नहीं थी. उसका मन दस साल पहले की यादों में खोने लगा था लेकिन उन्हें झटक कमरे से निकली और परदे की आड़ से उनलोगों को देखने लगी.

विमल आज भी वैसा का वैसा ही था. संकोची...चुप-चुप सा रहने वाला...सरिता उसे हँसाने की कोशिश में लगी थी. बीच-बीच में कामयाब भी होती. तब तक कर्मचारी पावभाजी लेकर आ गया. सुबह से ऐसे ही बैठे दोनों, ये स्वागत अचानक देख थोड़े असहज हुए लेकिन कर्मचारी चूँकि जान-पहचान का था सो उसने बता दिया कि मैडम के कहने पर लाया हूँ, उनकी तबियत ठीक नहीं इसलिए मिलने नहीं आ सकतीं.
दोनों खाने लगे. सरिता पूरा ख्याल रख रही थी कि विमल ठीक से खा ले. तारिका अपनी आँखों के कोरों को पोंछने लगी. उसी अच्छा लग रहा था कि विमल को प्यार करने वाली बीवी मिली है.

कर्मचारी ने उनदोनों को बता दिया कि दो दिनों बाद ही आना अब. वे चले गये. रात का खाना किसी तरह खाया तारिका ने भी और बिस्तर पर चली गयी. नींद आज शायद ही आनेवाली थी.

बात दस साल पहले की थी. वह पच्चीस साल की नौउम्री जब तारिका को दुनिया बेहद खूबसूरत लगती थी. पिता मेयर थे और माँ प्रोफेसर. दिन भर लोगों का ताँता लगा रहता. उसकी माँ के कॉलेज का ही छात्र था विमल. बिल्कुल साधारण लड़का...पढ़ने में भी और आर्थिक स्थिति में भी. साथ ही बहुत संकोची स्वभाव का. उसके पिता की छोटी सी किराना दुकान थी.

तारिका की माँ चूँकि नेता की पत्नी थी सो समाज में मेलजोल और प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने गरीब छात्र-छात्राओं को निःशुल्क ट्यूशन देने घर बुलाती. विमल भी आता था. बीकॉम की पढ़ाई तो समझो उसके लिए जंजाल थी!

एक शाम तारिका की माँ ट्यूशन के समय घर नहीं आ पाई किसी व्यस्तता के कारण. छात्र जीवन, मस्ती का जीवन. उनलोगों में इधर-उधर की बातें होने लगीं. उनमें से एक कामिनी ने मोबाइल पर पिकनिक की कुछ तस्वीरें दिखाते हुए अपनी और तारिका के साथ वाले चित्र भी दिखाए.

विमल ने मोबाइल उसके हाथ से ले लिया और तारिका की फोटो देख कर कहा,

“सुन्दर लग रही हैं यहाँ भी...”

“अच्छा!...” कामिनी ने छेड़ने के अंदाज में बोला. विमल के मुँह से निकल गया,

“हाँ, ये बहुत सुन्दर हैं भी!...हमेशा देखता हूँ इनको अखबारों में मेयर साहब के साथ...”

सब हँस पड़े. बात आयी-गयी हो गयी. कुछ दिनों बाद एक दिन दोपहर को कॉलेज में विमल को किसी सोशल साइट पर तारिका की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई. वह पहले तो अपने स्वभाव के अनुसार हिचकिचाया लेकिन फिर एक्सेप्ट कर लिया.

एक्सेप्ट करते ही उधर से तारिका का मैसेज आया,

“हाय! थैंक्स फॉर एक्सेप्टिंग माय फ्रेंड रिक्वेस्ट...”

“योर ऑलवेज वेलकम”

इतना उत्तर लिख के घबराया हुआ विमल ऑफलाइन हो गया.

इसके बाद दोनों की चैटिंग होने लगी. हर बार पहल तारिका को ही करनी पड़ती. विमल तो बस उसकी पूछी हुई का जवाब भर देता.

धीरे-धीरे तारिका उससे खुलती गयी. सबके सामने तो बात करने से बचती लेकिन अपने घर ट्यूशन पढ़ते विमल को देख मुस्कुरा के निकल जाती. अंकित तब छोटा था. तारिका अक्सर विमल को पैसे देकर अंकित के लिए पिज्जा, बर्गर मँगवाती.

उस दिन तारिका जोर से हँस पड़ी थी जब उसने विमल से आमने-सामने बैठ के पूछ दिया था कि

“मैं तुम्हे बहुत सुन्दर लगती हूँ?”

वह शरमाया सा उठा और भाग ही गया. तारिका पीछे से उसे “लड़की-लड़की” कह के चिढ़ाती रही. समय बीतता रहा और विमल भी उससे घुलने लगा. उसका बीकॉम पूरा हो गया. वह खुल के उससे बात कर लेता. हाँ, अपनी स्थिति और मर्यादा का ध्यान हमेशा उसे रहता था.
उन्हीं दिनों तारिका के घर खाना बनाने आती थी सरिता. उम्र में तारिका से थोड़ी ही छोटी थी. उसकी माँ की किसी परिचित ने उसे वहाँ काम पर रखवाया था. सरिता की विधवा माँ आँगनबाड़ी में काम करती थी. सरिता ने भी जैसे-तैसे फाइन आर्ट से स्नातक कर रखा था लेकिन कहीं काम न मिल पाने के कारण परिवार चलाने में सहायता करने के उद्देश्य से उसने तारिका के घर खाना बनाना शुरू कर दिया.

सरिता जब भी विमल को तारिका के साथ देखती, उसके चेहरे पर खुशी आ जाती. उसे विमल से एक जुडाव महसूस होता था. ये निजी प्रेम न होकर एक गरीब का गरीब के प्रति लगाव था. वह खुश होती थी कि तारिका ने एक गरीब लड़के को अपना करीबी दोस्त बना रखा.

उतने दिनों की बातचीत में भी विमल तारिका को “तुम” कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. एक बार तारिका ने गुस्सा होकर कहा तो वह माना. अपनी जिद से वह उसके घर गयी. विमल का घर बहुत छोटा और साधारण था. घर में ही आगे दुकान बना रखी थी. उसके माँ-बाप ने तारिका की बहुत इज्जत की. विमल पूरे समय इसी बात को लेकर परेशान रहा कि कहाँ बिठाये तारिका को जिससे उसे कोई तकलीफ न हो! तारिका हँस के उसे पीठ पर धौल जमा देती.

समय निकलता रहा. तारिका का जन्मदिन आने वाला था. उसने शहर के मशहूर होटल में पार्टी रखी और विमल को भी बुलाया.

जन्मदिन की पूर्व संध्या पर तारिका अपनी कार में विमल के साथ बैठी बात कर रही थी. अचानक उसने विमल से पूछा,

“अच्छा ये बताओ, अगर हमारी शादी हो जाए तो?”

“क्या?” विमल ये सुनकर हकबका गया.

“हाँ बाबा, पूछ रही हूँ...अगर हमारी शादी हो जाए तो?”

“तो मुझे बहुत खुशी होगी...” विमल के चेहरे पर चिरपरिचित भोली सी खुशी नाच उठी. तारिका को भी उसके इस अंदाज पर हँसी आयी. उसने कहा,

“होशियार रहना...कल मेरे बर्थडे पर कुछ होने वाला है!”

अगले पूरे दिन विमल की तारिका से कोई बातचीत नहीं हुई. तारिका का फोन भी बंद रहा. शाम को विमल बुके के साथ बताये पते पर पहुँचा. जिस हॉल में पार्टी की बात कही गयी थी, उसमें एकदम अँधेरा था. विमल बाहर खड़ा इधर-उधर देखता रहा कि कोई मिले तो उससे जानकारी करे!

तभी अन्दर लाइट जली और ताली-सीटियों की आवाजें आने लगीं. विमल ने देखा तो हॉल सजा-धजा था और मेहमानों की भीड़ के बीच में राजकुमारी सी दिख रही तारिका केक वाले टेबल के पास खड़ी मुस्कुरा रही थी.

विमल ने अन्दर जाकर उसे बधाई दी और बुके थमाया. उसी समय उसे तारिका के मुँह से शराब की महक आयी! वह हैरत से उसे देखने लगा. तारिका उसके मन की बात ताड़ गयी और हाथ से इशारे में कहा,

“चलता है यार कभी-कभी!”

विमल से कुछ कहते नहीं बना. केक काटने के समय तारिका ने विमल को अपने एकदम पास बुला के खड़ा किया. सरिता चाकू लेकर आयी.

“हैप्पी बर्थडे टू यू! हैप्पी बर्थडे टू यू! हैप्पी बर्थडे टू तारिका... हैप्पी बर्थडे टू यू!” सबके इन्हीं कहकहों के बीच तारिका ने केक काटा और पहला टुकड़ा विमल की ओर बढ़ाया.

विमल ने खाने को मुँह खोला लेकिन उसके एकदम पास लाकर तारिका ने अचानक केक उसके पास खड़े किसी दूसरे लड़के को खिला दिया. सब जोर-जोर से हँसने लगे. विमल कुछ समझ नहीं पाया. बस उनलोगों को देखते हुए मुस्कुरा दिया.

तारिका ने पूछा,

“क्या हुआ? बुरा लगा?”

“अरे नहीं, मजाक तो अच्छा करती तुम हमेशा...” विमल ने भोलेपन से उत्तर दिया.

“मजाक! नहीं ये मजाक नहीं...सच था...तुम्हें केक का पहला टुकड़ा खिलाने का मेरा कोई प्लान था भी नहीं...” ये बात कहते-कहते तारिका का चेहरा गंभीर हो गया. विमल कुछ समझ पाता इससे पहले ही तारिका टेबल से थोड़ी दूर गयी और भाषण देने की शैली में कहने लगी,

“दोस्तों, इनसे मिलिए, ये हैं शहर के मशहूर आठ बटा दस फीट की दुकान में अपना आटे-दाल का धंधा चलाने वाले के एकलौते बेटे विमल जी”

विमल सन्न रह गया. उनसे थोड़ी दूर खड़ी सरिता भी चौंक उठी लेकिन तारिका कहती रही,

“इनके घर की हालत चाहे जितनी साधारण हो, ये बड़े घर की लड़कियों पर आँखें जमाये चलते हैं, उनके चेहरे को सुन्दर बताते चलते हैं...क्या पता कोई पट जाए!”

“तारिका ये तुम...” विमल इतना ही कह सका. तारिका ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी और बोली,

“सुना आपलोगों ने? ये मुझे इस तरह नाम से बुलाएगा! इतना बड़ा आदमी है ये!”

विमल की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी. अपने चारों ओर खड़े लड़के-लड़कियों के चेहरे से बरसता रौब उसे कुछ कहने ही नहीं दे रहा था. वह बेबसी में इधर-उधर देखता रहा. सरिता ने जरूर तारिका को समझाना चाहा,

“दीदी, आज आपका जन्मदिन है...किसी के आँसू मत लीजिए...अपशकुन होगा...”
“चुप कर तू” तारिका ने उसे भी झिड़का, “जाकर अपना काम देख”

अंततः तारिका ने सारे रहस्य से परदा उठा दिया. वह बोली,

“मैंने जिस दिन कामिनी से सुना कि ये मुझे सुन्दर बताता फिरता है, मेरे कान उसी दिन खड़े हुए. मैंने इससे दोस्ती का दिखावा यही जानने के लिए किया कि ये आखिर और क्या-क्या सपने पाले हुए मुझे लेकर...पता चला कि मिस्टर मुझसे शादी तक का ख्वाब देख चुके हैं!”

विमल ने अपने आँसू पोंछ लिए थे और सूनी आँखों से तारिका पर ताक रहा था. तभी पीछे से उसी लड़के ने, जिसे तारिका ने केक का पहला टुकड़ा दिया था, उसकी पीठ पर थपथपाते हुए कहा,

“और इज्जत करानी है या निकलोगे अब?

विमल जाने लगा पीछे से तारिका ने उसे बताया,

“हाँ तो जाते-जाते सुन लीजिए कि ये मेरे होने वाले पति हैं, मैं इन्हीं से प्यार करती हूँ...”

विमल ने उसकी बात पर सिर हिलाया और चला गया. पार्टी फिर से अपने रंग में आ गयी. हाँ, कामिनी जरूर थोड़ी खिन्न रही. सरिता ने आखिर तक वहाँ काम किया लेकिन बिना कुछ खाए-पिए निकल गयी. तारिका ने इसकी कोई परवाह भी नहीं की. सुबह खुमार उतरने के बाद तारिका को अपने इतने अभद्र होने का जरा अफसोस तो हुआ लेकिन उसने उस समय इसपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

इस घटना के लगभग पंद्रह दिनों बाद सरिता ने काम पर आना छोड़ दिया. तारिका ने अपने किसी नौकर के हाथों उसके वेतन के बाकी पैसे भिजवाए मगर उसने लेने से मना कर दिया. विमल से उसके बाद उसकी कोई भेंट नहीं हुई. कामिनी एक बार जरूर मिलने गयी थी जहाँ विमल ने उससे रो-रोकर कहा कि मैंने तो साफ मन से तारिका की तस्वीर को सुन्दर कहा था. उसे लेकर कभी कोई सपना नहीं देखा था. शादी की बात भी तारिका ने खुद ही पूछी थी.
कामिनी ने आकर तारिका को ये बातें बताई. तारिका को उस दिन काफी बुरा लगा अपना बर्ताव याद कर के लेकिन दिल में भरे घमंड ने फिर से उसे रोक लिया. कामिनी और तारिका की बातचीत भी उस दिन से कम हो गयी.

जिस लड़के से तारिका प्यार करती थी, उसका नाम अरिजीत था. अच्छे घर से होने के साथ-साथ वह पढ़ाई में भी तेज था. आईएएस की परीक्षा पास कर गया. दोनों की शादी हुई और दोनों दूसरे राज्य में बस गये. तारिका ने अपना एनजीओ खोल लिया. शादी के दो सालों बाद उसे किसी पुराने दोस्त से पता चला कि सरिता ने विमल से शादी कर ली है.

जीवन खुशी-खुशी कट रहा था परन्तु “दुख” क्या होता है, ये तारिका की समझ में तब आया जब उनलोगों से भी ऊँचे घर की किसी लड़की ने उसके छोटे भाई अंकित को ठुकरा दिया. वह पहलीबार खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगी थी.

आज विमल और सरिता को अपने सामने पाकर उसे ऐसा लगा कि जैसे कुदरत ने उसे अपनी भूल सुधार का एक अच्छा मौका दे दिया. अगले दिन अरिजीत के लौटते ही उसने उसे सारी बात बताई.

“हम्म” अरिजीत ने सारी बातें सुनने के बाद लम्बी साँस ली और बोला, “उम्र के कच्चेपन में हमसे गलती तो बहुत बड़ी हुई! खैर, अब देखते हैं, जितना कुछ बन पड़ेगा, उन दोनों के लिए जरूर करेंगे”

सुनकर तारिका को थोड़ी राहत मिली. अरिजीत ने उसी कर्मचारी को बुलाकर पूछा कि आखिर लोन विमल को चाहिए क्यों?

उसने बताया कि विमल इस शहर में किसी निजी कंपनी में एकाउंटेंट का काम करता था. दस हजार रुपये तनख्वाह थी लेकिन कंपनी ही बंद हो गयी. इधर-उधर बहुत दिनों तक काम खोजते रहे मगर सफलता नहीं मिलने पर पत्नी सरिता ने सलाह दी कि वो खुद ही चित्रकारी सिखाने का सेंटर खोल लेगी क्योंकि आखिर फाइन आर्ट्स से ही पढ़ा है. उसी के लिए पचास हजार का लोन चाहिए. जिस किराये के घर में रहते, वह केवल एक कमरे का. दूसरा कमरा लेने के लिए कुछ पैसा तो चाहिए! एक बेटी भी है उनकी.

कर्मचारी बता के चला गया. तारिका ने अरिजीत से कहा,
“लोन दिला भी दिया तो वे चुकाएँगे कैसे? हालत तो अब भी बुरी लग रही उनकी!”

“वही तो मैं सोच रहा हूँ...” अरिजीत विचारमग्न था. तभी तारिका को एक उपाय सूझा. वह बोली,

“अरे वो सिन्हा साहब हैं न! जिनके कई प्राइवेट स्कूल! वे बता रहे थे मुझे कि एकाउंटेंट की जरूरत है उनको...पंद्रह हजार तक सैलरी!”

“चल ये तो बन गया काम...” अरिजीत भी खुश हो उठा, “उनसे बात करो जल्दी से जल्दी और बोलो कि हम एक आदमी भेज रहे”

“हाँ” तारिका मुस्कुरा के बोली, “लेकिन उसका वो लोन! सरिता भी अपना सेंटर खोल ले तो अच्छा रहेगा”

अरिजीत ने सेफ से पचास हजार रुपये निकाले और कर्मचारी को बुलाकर कहा,

“तुम तो उनके परिचित हो, ये जाकर उनको दे देना, कहना कि तुम अपनी ओर से दे रहे हो, आराम से अपना सेंटर खोलें...समझे? ये मत बताना कि डीएम साहब ने दिया है”

कर्मचारी विमल को मानने लगा था. उसका चेहरा खिल उठा. वह पैसे लेकर निकल गया.

“अब खुश?” अरिजीत ने तारिका से पूछा. तारिका ने हाँ में सिर हिलाया. अरिजीत बोला,

“उसकी बेटी को बड़ी होने दो, उसकी पढ़ाई का खर्च भी हम देंगे, कोई बहाना सोचना शुरू कर दो आज से उस मदद के लिए भी! हाहाहा”

“हाँ, जिस दिन उनके सामने जाने की हिम्मत जुट जाए, पैर पकड़ के माफी माँग लूँगी उनसे...” कहते-कहते तारिका के आँसू धारा बनके बहने लगे. अपनी भूल की क्षतिपूर्ति वे शुरू कर चुके थे (समाप्त)

6 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 04/09/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीय :) आपका प्रेम यों ही मिलता रहे

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  2. बढिया कहानी...आखिरतक बांध कर रखा।

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    1. प्रोत्साहित करते शब्दों के लिए आपका हार्दिक आभार मैम :)

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