बुधवार, 19 दिसंबर 2018

पहेली का हल (बाल कहानी)


एकबार एक राजा अपने राज्य के जंगल वाले इलाके से होकर गुजर रहा था. अचानक उसके सामने शेर आ गया. राजा का घोड़ा शेर के डर से अनियंत्रित होने लगा. राजा ने अपनेआप को सम्हालने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह घोड़े से गिर ही पड़ा. उसकी तलवार छिटक के उससे दूर हो गयी. शेर गुर्राता हुआ राजा के और निकट आ गया.

राजा को अपनी मृत्यु दिखाई देने लगी थी मगर उसी समय एक आदिवासी युवक जलती हुई मशाल लेकर शेर और राजा के बीच कूद पड़ा. जंगली जानवरों को आग से भय होता है. वह शेर भी आग देखते ही पीछे हटने लगा. उस आदिवासी युवक ने बहुत ही बहादुरी से ललकारते हुए उस शेर को भगा दिया.

राजा ने चैन की साँस ली. उसने उस युवक से उसका परिचय माँगा. युवक ने अपना नाम कर्मा बताया और बोला कि वह यहीं पास में रहता है. घर में उसके अलावा उसकी बूढ़ी माँ, जवान बीवी और एक बेटा है. बेटा अभी बालक है. रोज की तरह आज भी कस्बे के ढाबे से परिवार के लिए खाना लेने जा रहा था परन्तु शेर और घोड़े की आवाजें सुनकर यहाँ चला आया कि कहीं कोई संकट में तो नहीं?

राजा उससे बहुत प्रसन्न हुआ. उसने तुरंत अपनी कमर में बंधी स्वर्ण मुद्राओं की पोटली से इक्कीस स्वर्णमुद्राएँ निकालीं और और कर्मा को देते हुए बोला,

“कर्मा, ये लो तुम्हारा पारितोषिक...हम तुमसे बहुत खुश हैं”

कर्मा ने राजा को प्रणाम किया और एक स्वर्णमुद्रा उसे वापस करते हुए कहा,

“महाराज, मैं बीस स्वर्णमुद्राएँ ही लेना चाहता हूँ...यह एक स्वर्णमुद्रा आप मेरी ओर से किसी और निर्धन को दे दीजिएगा”

“ऐसा क्यों भई?” राजा ने उससे कारण पूछा. कर्मा मुस्कुराकर कहने लगा,

“महाराज, मुझे हिसाब करने में सुविधा रहेगी”

“हिसाब? कैसा हिसाब?” राजा को उसकी बात कुछ समझ नहीं आई. कर्मा ने उत्तर दिया,

“महाराज, मैं अपनी हर चीज के चार भाग करता हूँ. पहला भाग ऋण उतारने के लिए देता हूँ और दूसरा ऋण देने के लिए. तीसरा भाग स्वयं रखता हूँ और चौथा व्यर्थ में लुटा देता हूँ. बीस मुद्राओं के चार भाग आसानी से हो जाएँगे. इक्कीसवीं मुद्रा पास रही तो दिक्कत होगी”

राजा को ये बात तो और भी पल्ले नहीं पड़ी किन्तु उसने संकोचवश कर्मा से और कोई प्रश्न नहीं किया और उसे बीस मुद्राएँ देकर महल लौट आया.

रात्रिकाल में भोजन के उपरांत राजा छत पर टहलते समय कर्मा की ही कही बात के बारे में सोच रहा था. उसे अब तक उसकी बात का आशय स्पष्ट नहीं हो सका था. राजा की पत्नी ने राजा को सोच में डूबा देखा तो पूछ बैठी,

“किस उधेड़बुन में हैं आज हमारे पतिदेव?”

राजा ने उसे सारी बात बताई. रानी हँस पड़ी और बोली,

“धत्त तेरे की...बस इतनी सी बात? महाराज देखिए, कर्मा ने आपसे कहा कि हर वस्तु के वह चार भाग करता है, ठीक?”

“हाँ, बिल्कुल ठीक” राजा बोला.

“हम्म” रानी आगे कहने लगी, “पहला भाग वह ऋण उतारने के लिए देता है अर्थात अपनी माँ को देता है. माँ ने उसे पाल-पोस कर इतना बड़ा किया अतः माँ को देना उसका दायित्व”

“अरे वाह, ये तो सही कहा तुमने” राजा को यहाँ तक बात साफ हो गयी लेकिन उसने फिर पूछा,

“और अन्य हिस्से?”

“हाँ वही तो बता रही” रानी ने पुनः बोलना आरम्भ किया, “दूसरा हिस्सा वह ऋण देता है यानि अपने बेटे को देता है ताकि बड़ा होकर वह भी उसका ख्याल रखे. तीसरा हिस्सा खुद रखता है अपनी पत्नी के पास और चौथा बर्बाद करता है मतलब अपने भाई को सौंप देता है”

“अच्छा...ये चक्कर!” राजा को बाकी बातें तो समझ आ गईं फिर भी एक बिंदु उसे स्पष्ट नहीं हो सका था. उसने रानी से पूछा,

“महारानी, और सब तो ठीक है लेकिन चौथा हिस्सा भाई को देने से वह हिस्सा व्यर्थ कैसे हो गया?”

रानी मुस्कुरा के बोली,

“महाराज, उसका भाई निकम्मा होगा, परिवार के लिए अनुपयोगी होगा”

राजा को जोर से हँसी आ गयी. पूरी पहेली का हल उसे मिल चुका था (समाप्त)

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