दिवु गिलहरी उदास सी बैठी थी. उसके दोस्त मक्कू चूहे ने कारण पूछा तो उसने बताया,
“मुझे कभी-कभी दिखना बंद हो जाता है...कुछ भी
नहीं दिखता उस समय”
“ओह्हो” मक्कू परेशान स्वर में बोला, “चल आज शाम
ही तुझे डॉक्टर के पास ले चलता हूँ”
शाम को दोनों आँखों के डॉक्टर मटरू हाथी के
क्लिनिक में पहुँचे. मटरू ने दिवु की आँखों की जाँच की. अक्षर भी पढ़वा के देखे.
उसे कोई गड़बड़ी नहीं मिली. उसने मक्कू से कहा,
“ये गिलहरी तो सब सही-सही पढ़ रही है! और आँखों
में भी कोई प्रॉब्लम नहीं है! खैर...मैं कुछ दवाएँ लिख रहा हूँ...उनको लो और अगर
कोई समस्या लगे तो महीने भर बाद मुझसे मिल लेना”
मक्कू ने दवाएँ खरीद ली. एक आई ड्रॉप थी और दूसरी
टेबलेट. दोनों आँखों के लिए थे. दिवु ने महीने भर दवा डाली और खायी.
अगले महीने जब मक्कू ने उससे पूछा तो उसने बताया
कि समस्या जस की तस है अचानक से दिखना बंद हो जाने की. मक्कू फिर उसे लेकर मटरू के
पास पहुँचा.
इसबार मटरू ने आई ड्रॉप डाल के बड़ी मशीनों से
दिवु की आँखें चेक की. अबकी भी कोई रोग उसकी पकड़ में नहीं आया. हार के उसने आँखों
को आराम देनेवाला एक बिना पावर का नॉर्मल चश्मा और कुछ नये टॉनिक लिख दिए.
“अरे चूहे, तुम्हारी दोस्त की आँखें तो एकदम ठीक
हैं...मेरी समझ नहीं आ रहा कि इसे दिक्कत क्यों आ रही अचानक न दिखने की!
मटरू अपना सिर पकड़ के बोला. मक्कू दिवु के साथ
चश्मा और दवाएँ ले घर लौट आया.
पन्द्रह दिनों तक चश्मा लगाने और दवा लेने के
बाद दिवु अपनी दुकान पर बुरा सा मुँह बनाये बैठी थी. मक्कू भी वहाँ आया. उसने
पूछा,
“अब कैसा है हालचाल तुम्हारा?”
दिवु दहाड़ें मार के रोने लगी, “कोई फायदा नहीं
हुआ...परेशानी जस की तस है मेरी”
“यार तुझे चेक करते-करते वह डॉक्टर मटरू पगला
गया...इतनी दवा ले चुकी तू...चश्मा पहन के बैठी है...तब भी परेशानी दूर नहीं हुई!
ये चक्कर क्या है?"
"मुझे क्या पता! मुझे पता होता, फिर बात ही क्या होती? मैं इतनी परेशान हूँ, ऊपर से तू मुझसे ही सवाल किये जा रहा है"
गिलहरी ने चिढ़ते हुए कहा. फिर मक्कू ने पूछा,
"अच्छा एकबात बता...तुझे अचानक न दिखना कब शुरू होता है? सुबह
में, शाम में या रात में?”
“कभी भी हो सकता” दिवु मक्कू को धीरे से मुक्का
मारती हुई बोली, “जब भी आँखें बंद करती हूँ, दिखना भी बंद हो जाता है...घुप्प
अँधेरे कमरे में भी नहीं देख पाती...और रात को सोने के बाद तो कुछ भी नहीं
दीखता...”
“क्या?” मक्कू का मुँह खुला का खुला रह गया.
उसने पूछा, “तो ये समस्या है तेरी?”
“हाँ” दिवु मुँह फुलाकर बोली. मक्कू चूहा सिर पकड़ कर बैठ गया.
“अरे-अरे, अब तुझे क्या हुआ? दिवु गिलहरी ने पूछा. मक्कू की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे, रोए या हँसे! (समाप्त)
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