सोमवार, 7 जनवरी 2019

वो कौन थी? (कहानी)

“दीदी, मैं स्कूल के लिए निकल रही हूँ...” सुहानी ने बड़ी बहन सोनाली से कहा और सीढियों से नीचे उतर आयी. उसका पति राकेश घर के आगे वाले कमरे में बैठकर कोई किताब पढ़ रहा था. उसका ध्यान किताब से बाहर आया तो उसने दूर से ही कह दिया, 

“हाँ...तुम जाओ...मेरे भी स्टूडेंट्स आते होंगे” सुहानी मुस्कुराती हुई वहाँ से चली गयी.

उनलोगों की यही दिनचर्या थी. सुहानी निजी विद्यालय की शिक्षिका थी. वो अपने स्कूल चली जाती और राकेश कोचिंग क्लासेज में व्यस्त रहता. क्लासेज की पूरी व्यवस्था उसने घर के अगले कमरे में ही कर रखी थी. राकेश के माँ-बाप इन दिनों महीने भर के लिए अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गये हुए थे.

उधर, बालकनी में खड़ी सोनाली, सुहानी को बाय कर रही थी. सुहानी की शादी के बाद पहली बार वो उसके ससुराल आयी थी और बहन को खुश देख उसका मन खिल उठा था. सुहानी ने जब घर में राकेश के बारे में बताया तो पहलीबार में सबने गुस्सा ही जाहिर किया था. पापा तो संभवतः और मुखर विरोध करते लेकिन बाद में मम्मी ने बेटी की खुशी की खातिर समझा-बुझाकर उन्हें मना लिया. सोनाली को भी सुहानी के प्रेम विवाह से कोई आपत्ति नहीं थी. उसे दिक्कत थी तो केवल उसकी जल्दबाजी से. राकेश से मिलने के बस छः-सात महीनों के अन्दर सुहानी ने उससे शादी की रट पकड़ ली थी.

नौ बजने को आ गये. सोनाली को चाय की तलब लगी. वो नीचे आयी. राकेश विद्यार्थियों के बीच मगन था. सोनाली ने उससे चाय के लिए पूछा और फिर किचन में चली गयी.

लौटी तो देखा कि वो क्लास से अलग, पास वाले कमरे में किसी से फोन पर बात कर रहा था. सोनाली को देखकर उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी और हँसकर बोला,

“वाह दीदी! आपने कितनी जल्दी बना ली...मैं तो पत्ती, दूध ही खोजता रहता इतनी देर...”

चाय देकर सोनाली फिर ऊपर चली गयी. टीवी देखते-देखते कैसे बारह बज गये, पता ही नहीं चला. घड़ी पर नजर गयी तो जल्दी से उठी. सुहानी के भी आने का समय हो चला था. वो किचन में चली गयी.

दाल-चावल चढ़ाने के बाद समझ में नहीं आया कि सब्जी क्या बनाए! करेला तो है लेकिन पता नहीं राकेश का अभी करेला खाने का मन है या नहीं! यही पूछने उसके कमरे में गई. राकेश हमेशा की तरह कमरे में नहीं मिला.

राकेश का कहीं पता नहीं था. वापस लौटने को हुई, तभी उसकी नजर राकेश के मोबाइल पर पड़ी. उसमें चैट विंडो ओपन थी. शायद वो किसी से अभी-अभी चैट कर रहा था और बीच में ही उठ गया था.

सोनाली ने पहले तो खुद को रोका, लेकिन मन नहीं माना. उसने अनायास ही मोबाइल उठा लिया. चैट पढ़कर उसकी आँखें फैल गयीं. राकेश किसी “लव” नाम के कांटेक्ट से मैसेज पर बात कर रहा था,

“सुबह अचानक मेरी मैडम की दीदी चाय लेकर आ गयी थीं...इसलिए फोन काटना पड़ा”

उधर से दिल वाले एमोजी के साथ जवाब आया था,

“कोई बात नहीं. तुमने सही किया. दीदी मेरे बारे में जान जातीं तो तुरंत अपनी बहन को बता देतीं”

इतनी सी बात पढ़कर सोनाली का सिर घूमने लगा. ऐसे हुआ कि जैसे मोबाइल उसके हाथ से छूटकर गिर जाएगा! बाकी चैट वो पढ़ती, तब तक राकेश के कदमों की आहट सुनाई दी. वो मोबाइल टेबल पर रखकर तेजी से निकल गयी.

किचन में पहुँचते-पहुँचते दीवार का सहारा लेना उसकी मजबूरी हो गयी थी. साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं और शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. यहाँ आने के बाद, पहले दिन से ही उसने महसूस किया था कि सुहानी के न होने पर राकेश किसी से बातें करता रहता और कोई पास आ जाए तो तुरंत फोन काट देता. सोनाली ने इस बात को पहले साधारण तरीके से लिया था, लेकिन आज कारण जानकर उसका कलेजा मुँह को आ रहा था.

“बोला था इस लड़की को कि जल्दबाजी मत कर, लेकिन सुने कौन! कितने कड़े शब्दों में मुझसे कहा था कि दीदी, तुम क्या चाहती हो, मैं भी तुम्हारी तरह अकेली घूमती रहूँ? अरे उसे समझ ही क्या है अभी कि दुनिया कितनी खराब हो चुकी!” मन में उठते विचार सोनाली के दिमाग की नसों को फाड़ के बाहर आने को उतावले होते जा रहे थे. 

डोरबेल बजी. सोनाली समझ गयी कि सुहानी आ चुकी है. उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और पकते चावलों का हाल लेने लगी, लेकिन उसका दिल तो मानो उफन रहे चावलों के साथ उबलने लगा था.

सुहानी भी तब तक वहाँ आ गयी. उसने बड़ी बहन को पसीने-पसीने देखा तो घबराकर पूछा,

“दीदी, क्या हुआ? तबियत तो ठीक है ना?”

सोनाली ने बात घुमा दी. थोड़ी देर बाद सब खाने की टेबल पर बैठे. सोनाली सुहानी के प्रति राकेश के व्यवहार को भांपने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन वो बिल्कुल सामान्य तरीके से बर्ताव कर रहा था.

पूरे दिन सोनाली ताक में रही कि राकेश का मोबाइल किसी तरह हाथ आ जाये, लेकिन मौका अगले दिन शाम को मिला, तब राकेश और सुहानी छत पर थे और राकेश का मोबाइल कमरे में छूट गया था. सोनाली ने आनन-फानन में लव नाम की यूजर वाली चैट विंडो खोली और सारा चैट अपने ईमेल पर एक्सपोर्ट कर दिया.

रात सोनाली ने जल्दी सोने के बहाने से कमरा बंद किया और चैट पढ़ने लगी. आखिरकार, वही बात निकली जो उसने कभी नहीं चाही थी. उसकी आँखें बरसने लगीं.

अगले दिन दोपहर के समय सोनाली को लौटना था. सुबह-सुबह ही राकेश बाजार के लिए निकल गया. सोनाली समझ रही थी कि वह उसे विदा करते वक्त देने के लिए कपड़े, मिठाइयाँ आदि लाने ही गया है, लेकिन उसका मन तो अब राकेश से विरक्त हो चुका था. उसने सुहानी से कहा,

“तुम भी पैकिंग कर लो, साथ ही चलते हैं”

“मैं...अभी कैसे?...” सुहानी ने असमर्थता जताई. सोनाली को उससे ऐसे ही किसी उत्तर की आशा थी. उसने कहा,

“क्यों? अपना घर अब इतना पराया हो गया, जो मुहूर्त निकलवा के ही आओगी? इसी शहर में तो है!”

“नहीं बाबा, वो बात नहीं, लेकिन अभी मम्मी-पापाजी भी यहाँ नहीं हैं और राकेश भी...”

राकेश का जिक्र छिड़ते सोनाली ने आपा खो दिया. वह चिल्ला उठी,

“राकेश, राकेश, राकेश, इसी राकेश की सनक ने तो तुम्हारा सबकुछ बर्बाद कर दिया...अब क्राइम शो का एपिसोड भी बनवा लेना कि पति ने किसी और औरत के लिए अपनी पत्नी को मार डाला”

“क्या बोल रही हो दीदी?” सुहानी ने आश्चर्य से पूछा, “मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा, बात क्या हुई?”

सोनाली ने मोबाइल में सेव राकेश और लव की चैटिंग का पेज ओपन कर उसे थमा दिया. सुहानी हैरानी से पढ़ने लगी. सोनाली ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा,

“हिम्मत मत हार, मैं जिन्दा हूँ अभी, तू अपनी जॉब करती रह, बाकी कोई भी जरूरत हुई तो मेरी मोबाइल एजेंसी तेरी ही है...और इस राकेश की सारी दिल्लगी मैं उतरवाती हूँ अदालत में...”

“ये सब तुमको कहाँ से मिला?” सुहानी ने पेज स्क्रॉल करते हुए पूछा. सोनाली ने उसे सारी बातें बता दी. सुहानी धम्म से सोफे पर गिर पड़ी. सोनाली को लगा कि वो रो रही है, लेकिन सुहानी शांत थी. वो कह रही थी,

“दीदी, राकेश से मैंने प्यार किया है...सच्चा प्यार...यदि वो किसी और से प्यार करता है तो भी मुझे दिक्कत नहीं है” 

इतना बोलते-बोलते वो हँसने लगी. सोनाली अवाक् थी. उसने पूछा,

“अरे ये तुमको हँसने की बात लग रही?”

“ओह्हो दीदी...” सुहानी ने फिर कहा कि, “मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है” और फिर पागलों की तरह हँसने लगी. सोनाली को लगा कि सुहानी को सदमा तो नहीं लग गया. 

“बाबू, तुझे हो क्या गया है? सम्हाल खुद को...”

सुहानी का हँसना थोडा कम हो गया था. वह साँसों को सम्हालती हुई बोली,

“दीदी, चिंता मत करो...ये लव और कोई नहीं, बल्कि मैं ही हूँ...”

“क्या!” सोनाली का मुँह खुला का खुला रह गया.

“हाँ” सुहानी ने आगे बताना शुरू किया, “जब हमारी शादी तय हो गयी, तभी एक दिन राकेश ने मुझसे कहा कि अब मुझे तुम जैसी अच्छी बीवी तो मिल जाएगी, लेकिन मेरी प्यारी दोस्त छिन जाएगी. मैंने उसी दिन उससे वादा किया था कि तुम्हारी बीवी और दोस्त, दोनों बन के रहूँगी...इसलिए हम छिप-छिप के चैटिंग करते हैं”

“पागल कहीं की” सोनाली ने प्यार भरे गुस्से में सुहानी के गाल पर एक मुक्का मारा और पूछा, “लेकिन ये नम्बर तो तेरा नहीं है!”

“मेरा ही है” सुहानी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने चैटिंग के लिए नया नम्बर और मोबाइल भी खरीदा. सचमुच दीदी, हमारी ये फैंटेसी भले किसी को पागलपन लगे तो लगती रहे, लेकिन ये हमारे सम्बन्ध में गजब की ऊर्जा भरती है”

“बदमाश, तुमलोगों की इस फैंटेसी के चक्कर में मैंने पूरे तीन दिन किस तरह काटे हैं, मैं ही जानती हूँ” कहती हुई सोनाली, सुहानी के पास बैठ गयी. अब जाकर उसके कलेजे को ठंडक मिली थी. (समाप्त)

3 टिप्‍पणियां: