मंगलवार, 15 जनवरी 2019

सतजुगी डकैती (हास्य)

नयी जगह थी, नया बाजार लेकिन हाथ में थमी सामानों की लंबी लिस्ट को छोटा कराने किसी न किसी दुकान में तो जाना ही था सो एक लाला जी की भरी-पूरी हाट में जा घुसा। ग्राहक तो कोई नहीं था वहाँ लेकिन वे महाशय किसी से फोन से बतियाने में भयंकर रूप से लीन थे। मैंने इधर-उधर ताक-झाँक के थोड़ा टाइम काटा लेकिन वे फोन छोड़ने को तैयार हों तब तो! अब हमारा भी ध्यान गया कि आखिर किससे इतना प्यार जता रहे? वो भी इस तरह से

"अरे हाँ-हाँ भाई, अभी पिछले दिनों बहुत बिक्री हुई। पूरे पाँच लाख की। आप आइए तो सही। आपके बच्चे मेरे बच्चे जैसे हैं। अब कोई बहाना नहीं चलेगा, बस। हँ...हाँ पाँच मिनट में आप यहाँ होने चाहिए मेरे सामने, चलिए आइए सब लोगों के साथ"

इतना कह के उन्होंने फोन काटा और हमारी ओर सरसरी नजर मार के बोले

"कहिए हुजूर, क्या सेवा करें आपकी"

मैंने अपनी लिस्ट पकड़ा दी। नौकर को लिस्ट देकर वे अपने गल्ले में रखे रुपयों का हिसाब-किताब करने लगे। लिस्ट भारी-भरकम होने के कारण कुछ समय तो लगना ही था कि इतने में एक कार बाहर रुकी और उसमें से एकदम सांबा के जैसा एक आदमी निकला। मैं हैरान कि ये कौन आया? तभी उसके पीछे दो-चार कालिये भी निकल आये। लाला जी उनको देखते ही खड़े हो गये हाथ जोड़ के। भाव बिल्कुल वही जो समधी, दामाद टाइप रिश्तेदारों के आने पर होता है। सबसे अंत में एक सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व कार से बाहर अवतरित हुआ। कहने की जरूरत नहीं कि वो फुल्टु गब्बर का ही अपडेटेड वर्सन था लेकिन उन सभी के चेहरों पर गजब की सौम्यता थी जो चीख-चीख के कह रही थी कि हम दया के सागर हैं सो मुझे कोई खतरा आया महसूस नहीं हो रहा था। सब के सब अंदर दाखिल हुए। लाला जी ने उसे जल्दी से गले लगा लिया।

"देखिए शर्माइएगा नहीं, ए फुलुआ, चल बंदूक तान हम पर"

ये सुनकर मेरी पलकों की झपकन लाल बत्ती जला के खड़ी हो गयी। ये क्या मतलब कि बंदूक तान? जिसका नाम फुलुआ था, वो लाजवंत हो गया।

"नहीं लाला जी, ठीक है"

वो गब्बर तो आँखें ऊपर कर ही नहीं रहा था।

"देख, तू नहीं तानेगा तो हम खुद तुझसे छीन के तान लेंगे हाहाहा चल दहाड़ के बोल" लाला जी ने वापस उसे प्यार से थपकियाते हुए कहा। बेचारे फुलुआ ने सकुचाते हुए बंदूक उठाई और लाला जी के पैरों तरफ हल्के से तान के बोला

"जी, जो देना चाहते, दे दीजिए"

लाला जी खिसिया गये प्यार से

"अबे पगले, तू कैसा डाकू है? कड़क के तो बोल"

अब तो ससुरा मेरा दिमाग घूम गया। ये डकैती हो रही यहाँ! ये कैसे साधुदिल लूटने और लुटने वाले पैदा हो गये भाई! जो गब्बर जैसा दिख रहा था वो तो जज्बाती हो गया

"लाला जी, आपके दर्शन हो गये, हमारा सौभाग्य, अब चलते हैं"

"अरे, ऐसे कैसे चले जाइएगा आप? हमने कितनी मेहनत से आपके लिए अपनी तिजोरी की डुप्लिकेट चाबी बनवाई है। अरे फुलुआ, ले पकड़ और खोल ले तिजोरी" लाला जी ने पूरे अधिकार से उसे चाबी पकड़ाई। फुलुआ बेचारा तिजोरी खोल के नोटों की गड्डियाँ झोले में भरने लगा। तभी गब्बर ने अपना मोबाइल निकाला और कहीं बात करने लगा

"जी, हमलोग लाला जी की दुकान में आये हुए। चार-पाँच लाख रुपये लूटे हैं। आप आ जाइए न जल्दी से दरोगा जी, हमलोग चार लोग हैं। आठ-दस सिपाही तो चाहिए ही कम से कम हमें ले जाने के लिए"

अब तो मैंने बाल नोंचने शुरू कर दिये। पहले लाला ने डाकू बुला के खुद को इतनी शराफत से लुटवाया और अब डाकू ऐसी भलमानसत से खुद पुलिस बुला खुद को पकड़वा रहा है! लाला के नौकर ने कब सामानों की थैली मेरे हाथ में थमा दी, कुछ पता नहीं चला

"सर, नौ सौ पचपन रुपये हुए"

"अबे चुप यार, यहाँ ये सतजुगी डकैती हो रही और तुझे दुकानदारी पड़ी है!" मैं उसी पर झल्ला उठा। खैर तब तक पुलिस आ गयी और जैसी कि मुझे आशा थी हथकड़ी लगाने को लेकर वैसा ही सबकुछ देखने को मिला जो थोड़ी देर पहले बंदूक तानने के लिए हुआ था। गब्बरवा की जिद पर हार के थानेदार ने भरे मन से हथकड़ी का उपयोग किया। नम आँखों से लाला जी लौट रही पुलिस जीप को देख रहे थे। वापस मिले नोटों की गड्डियाँ काउंटर पर ऐसे ही पड़ी थीं। मैं सारा दृश्य देख-देख के पगलाता जा रहा था कि तभी किसी ने पूरी बाल्टी का पानी मेरे ऊपर डाल दिया

"ऐ क...कौन है, कौन है" मैं हड़बड़ा उठा

"कौन है, कौन है क्या? एक दिन पहले से भांग पीना काहे शुरू कर देते हो कि आज होली के दिन भी आठ बजे तक सो रहे"

बीवी की चनचनाहट ने सत्य का ज्ञान क्षणों में करवा दिया कि हम अपने कमरे में सोते-सोते सपना देख रहे थे। हमारे मुख से मात्र इतना ही निकला कि

"बनी सदा फिरती रहती है सुबह-शाम यों चाकू सी
हे बीवी! तू काश निकलती सपनों वाले डाकू सी"

वो "आँय, क्या" में उलझी थी और हमने बाल्टी का बचा पानी उस पर उलट दिया

"होली हैऽऽऽऽऽऽ"

पकड़म-पकड़ाई का दौर अब कुछ घंटों तक जारी रहने वाला था (समाप्त)

6 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/01/2019 की बुलेटिन, " ७१ वें सेना दिवस पर भारतीय सेना को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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