सोमवार, 4 मार्च 2019

बीवी के जुल्म (हास्य रचना होली विशेष)

"हुँह, कल शाम को गया हूँ बनिये के यहाँ होली का सामान लाने, तब नहीं कह सकती थी, अब सुबह-सुबह बेसन ले आओ, हलवा बनाना है! अब आज होलिकादहन का टाइम है, कौन कब रंग-रंग करने लगे बाजार में, किसको पता!"

भुनभुनाते सुहावन चचा घर से धोती सम्हालते हुए निकले। पड़ोस के लड़के टल्लू ने छेड़ा।

"काहे बीपी बढ़ा रहे हैं चचा होली के एक दिन पहले ही? गाना-वाना गाना चाहिए भोर में"

पिनपिनाये सुहावन चचा दाँत पीसते लाठी लिए उसकी ओर बढ़े। वह हँसता हुआ भाग गया। बच्चों के अपनी-अपनी नौकरी पर चले जाने के बाद सुहावन चचा के घर की लगभग रोज की ही ये कहानी थी। चाची बार-बार समझाती कि पैंसठ की उम्र हो गयी। चलो बच्चों के साथ रहते हैं लेकिन इनपर जवानी में की गई पहलवानी का जोश अबतक उतरा नहीं था। हरबार पलट के धौंस दिखा देते।

"अरे पिलपिलाया बुढ़वा बूझ गयी है क्या हमको भी? चार ठो जवान को यहीं के यहीं धोबियापाट दे देंगे अकेले, पहलवान कोई के भरोसे आराम नहीं करता हाँ"

चाची चुप हो जाती। जानती थी कि अक्ल तो पहले ही घुटने में थी। अब बुढ़ौती में और एड़ी की ओर बढ़ चली है। सो ज्यादा बहस करना भी...।

इधर सुहावन चचा रास्ते में ही थे कि एक मजनू की दुर्दशा वाला नौजवान टमटमुआ की चाय दुकान में रोता दिखा। उन्हें थोड़ा अजीब लगा। ये कौन रो रहा सवेरे-सवेरे यहाँ बैठ के? आज से ही रँग-पुत के भूत बन चुके टमटमुआ से पूछा तो उसने भी न में सिर हिला दिया।

"पता न कौन है, पाँच बजे से यहीं पर बैठा हुआ, पूछने पर भी कुछ नहीं बताता"

सुहावन चचा का दिल पसीज गया। दो चाय ऑर्डर कर के उसके पास बैठ गये।

"क्या बात है भाई? कौन हो? और काहे रो रहे? पहले तो इधर कभी नहीं देखा"

न जाने सुहावन चचा की पहलवान आवाज में क्या जादू था! नौजवान ने उनके पाँव पकड़ लिए।

"बहुत दुखी हूँ बाबा, कुछ रास्ता नहीं सूझ रहा"

"हुआ क्या? कुछ बताओ, शायद हमलोग मदद कर सकें!"

"बीवी अगर अच्छी न मिले तो फिर जीना कैसा!"

"ओहहो" उसके मुँह से यह बात सुनते सुहावन चचा का हृदय सीधे उसके हृदय से कनेक्ट हो गया फोर जी स्पीड से। फटाक से उसकी बीवी की जगह अपनी बीवी और नौजवान की जगह अपनेआप को रख के सोचने लगे। हालाँकि चाची बहुत अच्छी थी लेकिन चचा का पहलवानी दिमाग जो न कराए! तुरंत उस नौजवान से बोले,

"अच्छा वो क्या करती है तुम्हारे साथ? खाना नहीं बनाती?"

वो बोला, "खाना बनाने से क्या? खाना बना दे और बोले कि जाकर खुद खा लो, मेरे माँ-बाप को भी कड़क के बोले"

"च्च च्च, बहुत बुरा सचमुच" सुहावन चचा उसको ढाढस बँधाने के लिए बोले कि तभी फोन बजा। देखा तो चाची का था। रिसीव करते ही चाची ने पूछा,

"कहाँ अटक गये?"

"अरे आ रहे हैं न! रुको न दो मिनट!"

कह सुहावन चचा ने झल्ला के फोन कट कर दिया। माँ-बाप का जिक्र सुनकर इमोशन्स थोड़े और बाहर आने लगे थे कि इस युग में माता-पिता को इतना मानने वाला बेटा! उसके कंधे पर हाथ रख के बोले।

"बेटा लेकिन ये सब तो अब घर-घर का किस्सा, इतना बुरा हाल मत बना ले अपना"

नौजवान के आँसू फिर से छलक आए।

"चाचाजी, बात इतनी छोटी होती तो क्या मैं पागल था?"

उसके मुँह से अपने लिए "चाचा" संबोधन ने तो सुहावन चचा के रहे-सहे बेगानेपन को भी पटकनी दे दी। वे और भी जोश से उसकी बात सुनने लगे। वह कहता रहा।

"बीवी कमाई को लेकर ताने दे, घर की हालत को लेकर रोज सुनाए कि नया बनाओ, जल्दी से सबकुछ ला दो, आप ही बताइए कि कहाँ से लाए कोई अचानक सारी चीजें?"

"हम्म, हिम्मत से काम ले बेटा, खूब मेहनत कर, तू चाहे तो मैं..."

इसी बीच कुछ शरारती लड़कों ने रंग भरे हाथ लिए वहाँ दौड़ लगानी शुरू कर दी। सुहावन चचा ने कस के उन्हें डपटा,

", भागता है कि नहीं सब! देख रहा है कि ई बेचारा अपने एतना परेशान, ऊपर से इसको रंग-पेंट करने आ गया सब"

वे हीही करते भाग निकले। नौजवान का चेहरा सुहावन चचा के प्रति उपकार के भाव से भर गया। उसने आगे कहा,

"नहीं-नहीं चाचाजी, आप अनजान होकर मेरे लिए इतना सोच गये यही बहुत, औरत को समझना शायद दुनिया का सबसे कठिन काम"


सुहावन चचा सहानुभूति में सिर नॉनस्टॉप हिला रहे थे। तभी चाची का फोन फिर आया।

"अरे कलकत्ता चले गये कि राँची?"

"ओहहो, रुक न थोड़ी देर, कुछ जरूरी काम है तब तो कर रहा!"

सुहावन चचा का स्टैमिना तो बढ़ता जा रहा था लेकिन अभीतक वहाँ खड़ी तमाशबीन भीड़ अब छँटने लगी थी।

"चल यार, क्या बकवास सुननी! अपनी ही जिंदगी झंड है, दूसरों की सुनकर और मन खराब"

सुहावन चचा खिसियायी आँखों से जाते लोगों को देख-देख मन ही मन तुनक रहे थे।

"इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं बची आज के लड़कों में, गधे, निकम्मे"

चाय पीने-पिलाने के बाद सुहावन चचा ने पूरी-जलेबी भी मँगा ली उस नौजवान के लिए। वह धीरे-धीरे खाने लगा। बीच-बीच में वे उसको अपने अनुसार राय भी दे रहे थे। खाने के बाद नौजवान का चेहरा कुछ शांत हुआ। वह बोला,

"चाचाजी, अगर ससुराल वाले भी साथ दें तो बहुत कुछ ठीक हो सकता न? आखिर वे लड़की के घरवाले!"

"बेटा, तेरा घर है कहाँ?"

"यहीं बगल में ठुल्लूपुर में, नया आया हूँ"

"अच्छा, ठुल्लूपुर! वो तो चार-पाँच किलोमीटर यहाँ से केवल, रुक, शाम को तेरे घर आता हूँ मैं, समझाऊँगा बहू को भी, शायद तेरा काम हो जाए! तू अपना पता बता"

इतने में चाची का फोन फिर से आ धमका। इसबार की आवाज में बम फूटने का टोन ज्यादा था।

"अरे हलुवा नहीं खाएगा रे?"

"आ रहा हूँ बाबा, आ रहा हूँ, किसी के जीवन का सवाल था, अब जा ही रहा बनिये के यहाँ!"

चाची का ये टोन सुनकर चचा की पहलवानी अकड़ थोड़ी देर के लिए सस्पेंड हो गयी। वे कहते उठे,

"अच्छा बेटा तू मुझे जल्दी से पता लिख के दे, निकलना अभी मुझे"

नौजवान चुपचाप सिर झुकाए बैठा रहा। चचा ने जल्दी में पूछा।

"तेरी शादी को कितने दिन हुए?"

वह मुस्कुराकर दार्शनिक भाव से बोला।

"अभी हुई कहाँ चाचाजी! बात चल रही एक-दो जगह"

सुहावन चचा को तो लगा कि जैसे किसी ने कानों में जोर से सीटी बजा दी हो।

"तो तू उतनी देर से किस बीवी के जुल्मों की चर्चा कर रहा था?"

इतने में सायरन की आवाज गूँजी और एक अस्पताल की गाड़ी वहाँ आकर रुकी और डॉक्टर के साथ कुछ वार्ड ब्वाय उतरे। गाड़ी को देखते नौजवान फिर भागा लेकिन वार्ड ब्वायज ने उसको पकड़ के जैसे-तैसे गाड़ी में डाल ही दिया। सुहावन चचा हतप्रभ सारा माजरा देख रहे थे। डाक्टर बोला।

"पागल है ये साला, हमारी गाड़ी मरीजों को दूसरी जगह शिफ्ट कर रही थी कि बीच से भाग गया था, कल शाम से इसको खोज रहे"

गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी और अब वहाँ खड़े लोग पागलों की तरह सुहावन चचा पर हँस रहे थे। एक लड़के ने पेट पकड़े-पकड़े ही सुहावन चचा को पीछे देखने का इशारा किया। वे पलटे तो चाची घर में रखा पुराना भाला लिये जाने कहाँ की ताकत जुटाकर दौड़ती उनकी ओर ही आ रही थी। चचा तो धोती उठाकर दूसरी ओर भाग लिए और सारे लोग वहाँ लोटपोट हो चुके थे। कोई चिल्ला रहा था,

"चचा, बुरा न मानो, होली हैऽऽ" (समाप्त)

14 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को महाशिवरात्रि पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |


    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 04/03/2019 की बुलेटिन, " महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 6 मार्च 2019 को साझा की गई है..
    http://halchalwith5links.blogspot.in/
    पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।

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  3. होली पर मनभावन हास्य कथा
    सुंदर सुघड़।

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  4. वाह !!!बहुत खूब ,मजेदार हास्य कथा

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