गुरुवार, 7 मार्च 2019

बकरापुर की होली (बाल कविता)


होली के दिन बकरापुर में, शेर घुसे गुर्राते
भाग घरों में दुबके बकरे, अपनी जान बचाते

छूट गये उनके हाथों से गुब्बारे, पिचकारी
पड़ा रंग में भंग, हाय! आयी ये आफत भारी


गली-गली में लगी घूमने शेरों की वह टोली
"कब तक खैर मनाऊँ बेटे!" बकरे की माँ बोली

देख रही थी सबकुछ डाली पर बैठी गौरैया
उसने विनती की शेरों से - मेरे प्यारे भैया


इन बेचारों के उत्सव को शोक बना मत डालो
पशु-पशु भाई-भाई होते, सबको गले लगा लो

शेर ठठाकर हँसा और बोला - गौरैया बहना
डरना हमसे छोड़ सुनो क्या है हम सब का कहना


नहीं किसी को खाने आयी यहाँ हमारी टोली
आज खेलने आये हैं हम तुम सब के संग होली

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