शनिवार, 12 सितंबर 2020

मात्रा संयोजन कैसे करें? (वीडियो ट्यूटोरियल के साथ)

 सभी मित्रों को सादर नमस्कार


आपके समक्ष आज मात्रा संयोजन विषय को रख रहा हूँ। आशा है कि इससे आपको गीत-नवगीत, छंद, गीतिका इत्यादि लिखते समय पंक्तियों को लयबद्ध करने में सुगमता होगी। मैं यहाँ मानकर चल रहा हूँ कि आपको मात्रा गणना की पूरी समझ हो चुकी है। आपसे निवेदन है कि यदि आपको मात्रा गणना की जानकारी नहीं है तो इस पोस्ट को पढ़ने से पहले इसी ब्लॉग पर पिछली पोस्ट जो कि मात्रा गणना पर है, उसे पूरा पढ़कर समझ लें। तो आइए आरंभ करते हैं।


मात्रा संयोजन क्या है?


मित्रों, कोई भी वैसी विधा जो कि मात्राओं पर आधारित हो, उसे लिखने के लिए केवल मात्रा गणना की जानकारी ही पर्याप्त नहीं होती। शब्दों को उनके मात्राभार के अनुसार सही क्रम में सजाना भी आवश्यक होता है। जैसे एक उदाहरण देखिए -


नयन निहारें आपको, हृदय आपका दास.........(१)

निहारें नयन आपको, आपका हृदय दास.........(२)


दोनों पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए और उच्चारण करिए। ये दोहा की पंक्ति है। समान भाव एवं मात्राभार के बाद भी आप स्वयं पाएँगे कि (१) में गति (२) की तुलना में अधिक है। ऐसा क्यों? देखिए बताते हैं।


मात्रा संयोजन कोई डरने-घबराने की विषयवस्तु नहीं है। हम जब भी किसी विधा में लिखते हैं तो सीधी सी बात है कि पंक्तियाँ १००-१०० या २-२०० मात्राओं की तो होंगी नहीं! १६-१६ या ३०-३० अथवा इसी के थोड़ा-बहुत आगे-पीछे की मात्राएँ होती हैं। हमको क्या करना है कि उन पंक्तियों में "कलों" का क्रम सही रखना है। "कल" से तात्पर्य है


द्विकल (दो मात्राभार का शब्द, जैसे - हम, तुम, चल, बल आदि)

त्रिकल (तीन मात्राभार का शब्द, जैसे - आप, जाप, चलो, उठो आदि)

चौकल (चार मात्राभार का शब्द, जैसे - राजा, रानी, आओ, भारत आदि)

पंचकल (पाँच मात्राभार का शब्द, जैसे - निहारें, आपको, आइए, जाइए आदि)

षष्टकल (छः मात्राभार का शब्द, जैसे - गीतकार, बुद्धिमान, युद्धवीर, अलसाना आदि)


बस यहीं रुक जाएँ क्योंकि इससे बड़े कलों का निर्माण जैसे सप्तकल, अष्टकल इत्यादि इन्हीं छोटे कलों के साथ आने से बनते हैं। अगर कोई शब्द एक ही हो और सात, आठ या इससे अधिक मात्राभार का रहे भी तो उसको सीधे न गिन कर उसका आंतरिक कलों का समंजन देख कर ही उसको अपनी रचना में फिट करें।


मित्रों, आरंभ में जब आप मात्रा संयोजन का अभ्यास करें तो मेरा परामर्श होगा कि अष्टकल बनाना सीखें। दो अष्टकलों का मिलना यानि सोलह मात्राओं की पंक्ति बन जाएगी। सोलह-सोलह मात्राओं की पंक्ति से आप कोई तुकांत कविता, चौपाई छंद लिखकर अपना हाथ साध सकते हैं। कईबार मैंने देखा है कि लोग सीखने के शुरुआत में १७-१७ या १९-१९ मात्राओं की पंक्ति बनाने लगते हैं और ऐसे मात्राभार की पंक्ति में किसी नये रचनाकार को मात्रा संयोजन करना और भी कठिन हो जाता है। अष्टकल कैसे बनेगा, समझिए।


२ २ २ २ = ८

३ ३ २ = ८

४ ४ = ८


अर्थात आप २ २ २ २ मात्राभार के चार शब्द लेकर भी अष्टकल बना सकते हैं। ३ ३ २ मात्राभार के शब्द लेकर भी और ४ ४ के शब्द लिखकर भी। ३ ५ भी लिया जा सकता है लेकिन ५ ३ नहीं करना चाहिए। ऊपर जो उदाहरण मैंने दोहे की पंक्ति का दिया है, उसकी लय बाधित वाली दूसरी पंक्ति में यही हुआ है। ५ (निहारें) के बाद ३ (नयन) का उपयोग हुआ है सो गति कम हो गयी। चलिए सोलह मात्राओं की पंक्ति का अभ्यास किया जाए।


गीत तुम्हीं हो, प्रीत तुम्हीं हो। 

मेरे मन की मीत तुम्हीं हो।


गीत तुम्हीं हो (३ ३ २ = ८)

प्रीत तुम्हीं हो (३ ३ २ = ८)

मेरे मन की (४ २ २ = ८)

मीत तुम्हीं हो (३ ३ २ = ८)


अब आते हैं मुख्य सिद्धांत पर जो है कि सम के बाद सम और विषम के बाद विषम कलों का उपयोग होना चाहिए। ३ के बाद ३, २ के बाद २, ४ आदि। बस इस पोस्ट में अभी इतना ही। कोई सवाल या सुझाव हो तो जरूर लिखें। पोस्ट पढ़कर अभ्यास करें और मेरा परामर्श यही होगा कि किसी भी छंद विशेष जैसे दोहा, रोला, कुंडलिया आदि लिखने से पहले मात्रा संयोजन में खुद को दक्ष कर लें। इससे आपको अलग-अलग छंदों में अलग-अलग मात्रा संयोजन सीखने-समझने की मेहनत बच जाएगी। 



मात्रा संयोजन का वीडियो ट्यूटोरियल देखने के लिए यह वीडियो देखें - 



धन्यवाद


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