साथियों नमस्कार
मैं एक बार पुनः आपके समक्ष प्रस्तुत हूँ छंद लेखन पर नयी पोस्ट के साथ। जैसा कि आप अब तक समझ चुके होंगे कि मेरा प्रयास यही रहता है कि बिना किसी कठिन साहित्यिक भाषाशैली के बिना सरल से सरल शब्दों में आप तक छंद लेखन की जानकारियाँ पहुँचाऊँ।
मित्रों, छंद वेदों से जुड़ा विषय है। हमारे सनातन धर्म का और इस सृष्टि का अभिन्न अंग है। इस बात को हमेशा स्मरण रखें और अपने समृद्ध छंदों और इस परंपरा पर गर्व करें।
आज बात करते हैं दोहा छंद की। इसके शिल्प की कहें तो दोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। अर्धसम से अभिप्राय है कि इसके चार चरण समान नहीं होते। जिन छंदों के सभी चरण समान मात्राभार और मापनी का पालन करते हैं, वे सम छंद कहलाते हैं। दोहा के पहले-तीसरे चरणों में १३-१३ मात्राएँ होती हैं और दूसरे-चौथे चरणों में ११-११ मात्राएँ मिलती हैं। अब देखिए कि दोहा लिखा कैसे जाता है।
दोहे के पहले-तीसरे चरणों का अंत २१२ मात्राओं से होना चाहिए अर्थात दोहे के इन चरणों के अंत में १२२ या २११ जैसा कोई मात्राक्रम नहीं आना चाहिए। कुछ जगहों पर दोहे के पहले-तीसरे चरणों का अंत ११२ या १११ से भी बताया जाता है लेकिन ये जानकारी भ्रामक है क्योंकि जब आप इन नियमों पर लिखे दोहे देखेंगे तो पाएँगे कि ११२ के ठीक पहले १ होता है। इसी तरह १११ के ठीक पहले २ या ११ की उपस्थिति रहती है। इस प्रकार से वह पूरा शिल्प २१२ का हो जाता है।
दोहे के दूसरे-चौथे चरणों का अंत २१ से होना अनिवार्य है। ध्यान रहे कि इसको आप १११ नहीं कर सकते।
अब आइए इन चरणों की पूरी बनावट समझते हैं।
पहले-तीसरे चरणों का सही क्रम मात्राक्रम है = ८+२१२
दूसरे-चौथे चरणों का सही मात्राक्रम है = ८+२१
बस मुझे यहीं तक बताना था। जो ८ आप देख रहे हैं, उसे अष्टकल कहा जाता है, ये मैं पिछली पोस्ट में बता चुका हूँ। अष्टकल बनाने की विधि भी आप उसी पोस्ट में पढ़ चुके हैं २ २ २ २ या ३ ३ २ या ४ ४ अर्थात इसी तरह का कोई अन्य उचित मात्रा संयोजन जो इस क्रम को संतुष्ट कर सके।
इसके साथ अब एक और महत्वपूर्ण बात कि बस इस मात्रात्मक ढाँचे में कुछ भी लिख देना दोहा नहीं बल्कि दोहे के साथ अन्याय है। कठिन अभ्यास करें और दोहे के कथ्य को धारदार बनाएँ। बिम्ब, प्रतीकों से सजी भाषा के बिना कोई कविता नहीं बनती। छंद भी यही माँग करते हैं।
आइए दोहे के कुछ उदाहरण देखें
तम होता बेहद कुटिल, बात हुई यह सिद्ध।
तल में छिप मौका तके, दीपक कब हो वृद्ध॥
मात्राक्रम समझिए इसका
तम (२) होता (४) बे (२) हद कुटिल (२१२), बात (३) हुई (३) यह (२) सिद्ध (२१)
इसी प्रकार
राजनीति के खेल में, निष्ठा और उसूल।
ढूँढ रहा मन बावरे, क्यों गुल्लर के फूल॥
इसका मात्राक्रम देखिए
राज (३) नीति (३) के (२) खेल में (२१२), निष्ठा (४) और उ (२११) सूल (२१)
तो आशा है बहुत कुछ मैं स्पष्ट कर सका। कोई सुझाव या सवाल हो तो आपका स्वागत है। ऊपर लिखे दोनों दोहे मेरे स्वयं के लिखे हुए हैं। इनको उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करने का उद्देश्य केवल विषय को समझाना मात्र है। प्रयास करें और दोहे के पथ पर अपने भी पुष्प सजाएँ।
दोहा छंद का वीडियो ट्यूटोरियल -
धन्यवाद
शुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।
जवाब देंहटाएंआपको भी आदरणीय
हटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार
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