गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

चल पड़े भुट्टे (गीत)

चल पड़े भुट्टे निकल कर खेत से,

गोद माटी के जड़ें ही रह गयीं!


सज गया बाजार निर्मम आज फिर

लाभ के लोभी नयन जलने लगे,

बालपन का आवरण नोचा गया

समय के नाखून अब चलने लगे,


कर्म से सिंकना लिखा था, सिंक गये!

बंद आँखें हर जलन को सह गयीं!


खेत प्यारे, खेतिहर के हाथ भी

जन्मदाता के ऋणों से लड़ रहे,

दूर ग्राहक के कदम जाएँ नहीं

सो लुभाने में उन्हें हम अड़ रहे,


पूर्णता दायित्व की शय्या सुखद

देह भुट्टों की सुवासित कह गयीं!



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