सोमवार, 22 अगस्त 2022

साइकिल | Cycle | सड़कों पर हमारी पक्की दोस्त

साइकिल | Cycle | सड़कों पर हमारी पक्की दोस्त 



कौन होगा जिसे साइकिल की सवारी पसंद नहीं आती हो? बच्चे से लेकर बड़े, सभी साइकिल का अपने-अपने ढंग से इस्तेमाल करना चाहते हैं। चाहे वो स्कूल जाना हो या बाजार से सब्जियाँ लाना अथवा दोस्तों के साथ मस्ती। सबमें साइकिल हमारे काम आती है। दो दशक पहले तक साइकिल यातायात का सबसे प्रमुख साधन था लेकिन दुपहिया मोटरवाहनों के आने से इसके प्रति लोगों की रुचि कम हुई। जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने विश्व साइकिल दिवस मनाने का फैसला किया और पहला आधिकारिक विश्व साइकिल दिवस 3 जून, 2018 को मनाया गया था। 


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कैसे आयी दुनिया में साइकिल


18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही यूरोपीय देशों में साइकिल के प्रयोग का आइडिया लोगों के दिमाग में आ चुका था लेकिन इसे मूर्तरूप सर्वप्रथम सन् 1817 में पेरिस के एक कारीगर कार्ल वॉन ड्रैस ने दिया। उसने जो वाहन बनाया, उसे हॉबी हॉर्स, यानि काठ का घोड़ा कहा जाता था। वो साइकिल जैसा ही था लेकिन उसमें पैडल नहीं होती थी बल्कि उसे पैरों से धक्का देकर आगे बढ़ाना होता था, जैसा आजकल बच्चे साइकिल को खेल-खेल में पैरों से धक्का देकर चलाते हैं। पैर से घुमाए जानेवाले पैडलयुक्त पहिए का आविष्कार सन् 1865 ई. में पैरिस निवासी लालेमेंट (Lallement) ने किया। इस यंत्र को वेलॉसिपीड (velociped) कहते थे। इसपर चढ़नेवाला बहुत थक जाता था इसलिए इसे हाड़तोड (bone shaker) भी कहा जाने लगा। इसकी सवारी, लोकप्रिय हो जाने के कारण, इसकी बढ़ती माँग को देखकर इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका के यंत्रनिर्माताओं ने इसमें अनेक महत्वपूर्ण सुधार कर सन् 1872 में एक सुंदर रूप दे दिया, जिसमें लोहे की पतली पट्टी के तानयुक्त पहिए लगाए गए थे। इसमें आगे का पहिया 30 इंच से लेकर 64 इंच व्यास तक और पीछे का पहिया लगभग 12 इंच व्यास का होता था। इसमें पैडल के अतिरिक्त गोली के वेयरिंग और ब्रेक भी लगाए गए थे।


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भारत में साइकिल


हमारे देश में भी साइकिल लोगों के खूब काम आती रही है। आजादी के बाद जब गाँव-देहातों में कच्चे रास्तों की भरमार थी, उस समय साइकिल ने आम लोगों के जीवन में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। दूधवाले, किसान और नौकरीपेशा लोगों से लेकर डाक विभाग ने भी साइकिलों का जमकर उपयोग किया। आज भी बहुत से डाकिये साइकिल से ही चिट्ठियाँ बाँटने जाते हैं। आजादी की लड़ाई में यही साइकिल हमारे क्रांतिकारियों के भी काम आती थी।



साइकिल से जुड़ी रोचक बातें


  • नीदरलैंड को साइकिलों का देश कहा जाता है। वहाँ के प्रधानमंत्री भी साइकिल से अपने ऑफिस जाते हैं। यहाँ पन्द्रह साल से अधिक उम्र के हर आठ में से सात लोगों के पास साइकिल है। 
  • डेनमार्क के कोपेनहेगेन को 'सिटी ऑफ साइक्लिस्ट' भी कहा जाता है। यहां की तकरीबन 52 प्रतिशत आबादी नियमित साइकिल चलाती है।
  • बोनशेकर साइकिल का वजन अस्सी किलोग्राम था। इसे पहली कमर्शियल साइकिल माना जाता है।
  • साइकिल की सवारी चाइनीज लोगों को भी बहुत पसंद आती है। चीन में लगभग पचास करोड़ से ज्यादा साइकिलें हैं।
  • Bicycle शब्द फ्रेंच भाषा के bicyclette वर्ड से निकला है। 2011 में ऑस्ट्रियन साइकिलिस्ट मार्क्स स्टॉकल्स ने निकारागुआ में एक ज्वालामुखी पर्वत पर 164.95 km/h की गति से साइकिल चलाई थी। बाद में chilean desert में उन्होंने 167.6 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से साइकिल चलाकर अपना ही पुराना रिकॉर्ड ब्रेक किया।
  • साइकिल चलाने से केवल ईंधन की बचत और शरीर की अच्छी कसरत ही नहीं होती बल्कि रोजाना 30 मिनट साइकिल चलाने वाले व्यक्ति का दिमाग साधारण व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा एक्टिव रहता है और ब्रेन पाॅवर भी 15 से 20 फीसदी ज्यादा बढ़ता है।
  • आजकल कोरोना काल में हम लोग बार-बार इम्युनिटी बढ़ाने के उपायों पर चर्चा करते हैं। साइकिलिंग एक अच्छा इम्युनिटी बूस्टर है जो इम्यून सेल्स को एक्टिव रखता है। 



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