बस में रोज की तरह खचाखच भीड़ थी। पुलपर चढ़ते ही जाम से भी सामना हो गया। "आइसक्रीम वैनिला, स्ट्रॉबेरी, चॉकलेट" सुनते ही बेटी मचलने लगी, पापा, आइसक्रीम-आइसक्रीम। हमारे समझानेपर बच्चे समझ लें तो बच्चे किस बात के? बीच रास्ते की चीज, भरोसा न होते हुए भी दिलानी पड़ी। खिड़की से बाहर जैसे-तैसे हाथ निकाल के कप लिया। पर्स में चेंज न पाकर सौ का नोट निकाल के दिया ही था कि बस चल पड़ी। "अरे रुकना यार जरा" ड्राइवर को कहते-कहते शोरगुल में बस थोड़ी आगे जाकर ही रुक पाई। बाहर झांका तो आइसक्रीम वाला लड़का गायब था। जाम ऐसा कि पीछे खड़ी गाड़ियोंवाले हल्ला करने लगे। ड्राइवर ने बस दोबारा आगे क्या बढ़ाई कि बीवी का बरसना शुरू हो गया "और दीजिए सौ-सौ के नोट, भाग निकला न ले के"। चुपचाप सुनने के अलावा कोई चारा भी नहीं था कि अचानक आगे किसी ट्रक ने रास्ता अटका लिया। ओहह, एक तो गर्मी ऊपर से जाम तिसपर तीस की जगह सौ रुपये जाने का अफसोस और सबसे ज्यादा श्रीमती जी की चढ़ी हुई नाक। तभी एक आवाज ने ध्यान खींचा
"भैया"
मुड़कर देखा तो वही आइसक्रीम वाला लड़का खड़ा था। वह मुस्कुरा के बोला
"आपकी अँगूठी का ये नग निकलकर गिर गया था पैसे देते समय, आपलोगों की बस चल दी तो मैं पीछेवाली पर चढ़ गया, ये रहे आपके बाकी पैसे भी"
मैंने भौंचक सा अपनी टूटी अँगूठी को देखा फिर उस लड़के को। वह सबकुछ लौटा के सीधे उतर गया। मैं उसको कुछ रुपये देना चाहता था लेकिन बस फिर से आगे बढ़ चुकी थी। नग अपने लेडिज पर्स में सँभाल के रखती हुई बीवी का चेहरा उस लड़के के प्रति कृतज्ञता से भरा हुआ था।
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