"क्यों रामाधार बाबू, किसे वोट देना है इसबार?"
"आइए आइए गणपत जी, बैठिए। अजी वोट का सोचना क्या, वो तो तय है। अपना तो एक ही नेता है बलराम सिंह। उसको ही देंगे"
"लेकिन वो तो जेल से चुनाव लड़ रहा है। हत्या, अपहरण, रंगदारी, बलात्कार जैसे संगीन मामले दर्ज हैं उसपर"
"अरे तो आरोप लग जाने से कोई दोषी थोड़े हो जाता है! वो सब राजनीतिक चक्कर है। न्यायपालिका को अपना काम करने दिजिए। हम अपना विश्वास अपने नेतापर से क्यों हटाएं?"
"अपनी जाति का होने के कारण आप पक्ष ले रहे हैं उसका"
"बात स्वजातीय होने की भी उतनी नहीं है गणपत जी। आपसे कुछ छिपा तो नहीं है। हमारे पास के विधानसभा क्षेत्र में देखिए। सामाजिक कार्यकर्ता जगदानंद जी को भारी बहुमत से जिताया था वहाँ लोगों ने। आज क्या हाल है? उधर किसी इलाके का ट्राँसफर्मर भी जल जाए तो उसे बदलवाने में महीनों लग जाते हैं। इंजिनियर, ऑफिसर की तो बात छोड़िए छुटभैये कर्मचारी भी उनकी बात सुनने में आनाकानी करते हैं। इसके उलट हमारे क्षेत्र को देखिए, अभी परसों की ही बात है, मेरे घर के पिछवाड़े जो नाला बहता है वो जाम हो गया था, पानी गली में फैल रहा था। बलराम जी तक खबर पहुँची तो जेल से ही उन्होनें नगरपालिका ऑफिस में फोन किया और कुछ घंटों में सारी समस्या दूर हो गई। अब ज्यादा शराफत का जमाना नहीं रहा। सो उनको ही चुनिए जो वर्तमान में आपके काम आ सकें, किताबी बातों में उलझने का कोई फायदा नहीं"
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