गन्नू भाई छतपर सुबह-सुबह की ताजी हवा खाते हुए दाढ़ी बना रहे थे कि उनकी नौ में सौ का दम रखनेवाली बेटी चन्नो अपनी फुटबॉल टाइप थुलथुली काया से प्लास्टिक का हवाई जहाज हाथ में लिए हिलाती आ पहुँची, "सुई़ सुईं शूऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ"
"अरे बाप रे! ये इतनी जल्दी कैसे जग गयी आज?" पास बैठी बीवी टुनटुनिया दाल चुनते-चुनते हड़बड़ा गयी "अब तो कर लिए काम"
"धुत्त बुड़बक" गन्नू भाई मगन-मगन ही पूरी हिम्मत से बोले "देख कित्ते प्यार से खेल रही है"
तभी चन्नो रानी ने सवाल दाग दिया
"पप्पा, गुलगपाड़ा माने क्या होता है?"
"आँय, गुलगपाड़ा?" तीसरे अटेम्प्ट में मैट्रिक पास टुनटुनिया के लिए ये वर्ड नया था लेकिन गन्नू भाई थर्ड डिविजन से इंटर पास के लिए थोड़े सो फटाक से बोले
"गुलगपाड़ा माने हल्ला-गुल्ला" और फिर अपने मिशन क्लीन शेव में जुट गये
"गुलगपाड़ा, गुलगपाड़ा" रटती चन्नो प्लेन की गति को थोड़ा अधिक द्रुत करते हुए सीढ़ियों से वापस नीचे दौड़ गयी। टुनटुनिया अपने पतिपर आज इंप्रेस हो गयी सच्ची
"अजी, आपको पता था इसका मीनिंग? हम तो पहलीबार सुने"
सुनते ही गन्नू गुमान में कुप्पा हो इतना अकड़ के धनुष हुआ कि शेविंग रेजर का ब्लेड गाल पर रगड़ लिया
करुण चित्कार सुनते टुनटुनिया दाल की थाली पटक के भागी आयी "का हुआ जी"
"अरे कुछ नहीं जरा सा छिला गया है, फिटकिरी लगा लिया"
टुनटुनिया मुड़ी तो देखा कि सब चुनी और बिन चुनी दाल का मिक्सअप हो चुका था
"हाय राम, अब फिर से चुनना पड़ेगा"
तबतक चन्नो नीचे दादा-दादी के पास नाचती विराजमान थी और स्लोगन भी परिवर्तित कर लिया था। नया नारा था "दादाजी गुलगपाड़ा, दादाजी गुलगपाड़ा"
दादा ने दादी से फुसफुसा के पूछा "ई गुलगपाड़ा का होता है रे?" दादी ने मुंडी न जानने के इशारे में हिला दी तभी पास खड़ा पड़ोसी चंपुआ बोला, चचा, गुलगपाड़ा मने हल्ला, हम कल हीं तो अपनी हिंदी डिक्शनरी में पढ़े हैं"
"अच्छा, मतलब ई कह रही है कि दादाजी गुलगपाड़ा करते हैं, अब यह तो बच्ची है, सब माँ-बाप ने सिखाया होगा, अभी बताते हैं" गुस्से में टैंक बने दादा छल्लू बाबू अपनी वीरप्पन मार्का मूँछें फड़काते, लाठी उठाए छतपर आ धमके
"गन्नूऽऽऽऽऽऽऽ" उन्होंने जोरदार हुंकार लगाई
गन्नू ने पिता का रौद्र रूप देख के पलायन ही उचित विकल्प समझा और पड़ोस की छतपर छलांग लगा दी। आधी शेविंग क्रीम मुँहपर लगी ही थी तिसपर लुंगी भी वहीं रखी छड़ में फँसकर खुल गयी लेकिन गन्नू का रुकना असंभव था। इधर टुनटुनिया भगवान का शुक्रिया अदा किये जा रही थी कि गन्नू ने अंदर लंगोट बाँध रखी वर्ना जाने क्या हो जाता। गन्नू को जबतक ध्यान आया तबतक वह पड़ोसी के दालान में उतर चुका था। इस रूप में उसको देखते ही पड़ोसन चुमकी चिल्ला उठी
"आऽऽऽऽ बचाओ जी भुल्लु के पापा"
सीनियर भुल्लु तो सीधे तलवार लिए ही दौड़ा। गन्नू बेचारा बैक गियर में गतिमान हो गया। इधर दादाजी टुनटुनिया पर गरम थे
"क्या-क्या सिखाते हो बच्चों को जी तुमलोग? क्या सोचेगी हमारे बारे में वह?"
"अरे बाबूजी....सुनिए तो...हम..." टुनटुनिया समझाने की कोशिश में थी लेकिन सब बेकार। इस बीच चन्नो पास की मुरकी काकी के डेरे में जा पहुँची। अपने नृत्य को तनिक और खतरनाक बनाते हुए अब वो दुहरा रही थी "दादा-मम्मी गुलगपाड़ा, दादा-मम्मी गुलगपाड़ा"। मुरकी का एनजीओ था नारी मुक्तिवाला, उसको मसाला मिल गया। उसने झटाझट वहाँ उपस्थित अपनी साथिनों को संबोधित करते हुए कमर कस ली, बहिनों, हमारे पड़ोस में एक अबला संकट में है, उसका ससुर उसपर गुलगपाड़ा कर रहा है, चलो। सारी की सारी तुरंत गन्नू की छतपर चढ़ दौड़ीं और आंदोलन स्टार्ट कर दिया
"बहिना, तुम्हारी बहादुर बच्ची ने सबकुछ बता दिया, हम आ चुके हैं, डरना मत, जय नारी एकता-जय नारी एकता"
टुनटुनिया अवाक कि अब ये क्या मुसीबत आ टपकी! दादाजी तो हत्थे से उखड़ गये, मेकअप से तर होकर क्रांतिकारिन बनती है ससुरी आउर आज हमरे घर को फोड़ने आ गयी, चल भाग। उनको डंडा ताने देख मुरकी एंड कंपनी और उग्र हो गयी। तभी गन्नू वापस अपने छतपर कूदा, पीछे से सीनियर भुल्लु। उनको इस हाल में देख दादाजी और टुनटुनिया भौंचक्के। मुरकी पार्टी ने तो "हाय दइया" की चीख के साथ अपनी आँखें हथेलियों से बंद कर लीं। गन्नू नीचे भागा, ऊपर सीनियर भुल्लु दादाजी पर भड़का हुआ था। नीचे आते-आते उसका पैर कोने में रखे टिन के डब्बे से टकराया और डब्बा उछल के सीधे बाहर उधर से गुजरते सल्लू पहलवान को लगा। वह गालियाँ देता घर में घुस आया। उसको अचानक से यहाँ पाकर गन्नू वापस छत की राह पकड़नेपर मजबूर। नीचे दादी जैसे-तैसे पहलवान को समझाने की कोशिश में थी। नीचे-ऊपर दोनों जगह से शोर होता देख बाहर पेट्रोलिंग कर रही पुलिस की गाड़ी रुक गयी।
"क्या लफड़ा चल रहा है बे यहाँ?" थानेदार रौब सिंह ने कड़क के पूछा
उनको देखते अगल-बगल के सारे लोग मूषक गति को प्राप्त कर इधर-उधर जा छिपे। तभी गन्नू का मोबाइल बजा जो उसने लंगोट में ही बाँध रखा था। वह सीढ़ीपर ही कोने में छिप गया और नंबर देखा, गाँव के मशहूर बदमाश झप्पू का नंबर था
"क्यों बे गन्नू, पुलिस बुलाता है? उसदिन मुझे एक पॉकेट काटते तू बड़े गौर से देख रहा था, पकड़वाने की सोच रहा क्या"
"अरे नहीं बाबा, मैंने कहाँ पुलिस बुलाई?"
लेकिन गन्नू की सफाई गयी पानी में। झप्पू भी दरवाजेपर आ खड़ा हुआ। सब एकसाथ घर में घुस के गन्नू को निकाल बाहर खींचने लगे। अचानक से थानेदार रौब सिंह का हाथ पास रखी किचेन की अलमारी से लगा और मसालों की बरसात होने लगी।
रौब सिंहपर हल्दी गिरी, झप्पूपर धनिया, सीनियर भुल्लुपर जीरा पाउडर तो बीच-बचाव कर रहे दादा-दादीपर आटा, बीच में खिंच रहे गन्नूपर ही सबसे ज्यादा कहर फिर टूटा। उसपर लालमिर्च आ टपकी। बच के भागने की कोशिश में मुरकी दल का पैर आँगन में बिछी काईपर फिसल गया और सबकी साड़ी और मुँह हरे रंग की विभिन्न शेडिंग्स में हो गये। अंदर उपस्थित पूरे समुदाय का हाल बेहाल लेकिन बाहर चन्नो मस्त थी
"गुलगपाड़ा, गुलगपाड़ा"
भीड़ भी दुबारा जुटने लगी। टुनटुनिया विलाप के मूड में गरजी
"बंद कर न रे नासपीटी ई गुलगपाड़ा का अपना राक्षसनीवाला बवाल"
अबतक पूरे इलाके में कानाफूसी मच चुकी थी कि गन्नू के घर कुछ हो रहा है। सारा गाँव आ धमका। "अरे ये गन्नू चालू चीज है, जरूर कुछ किया होगा" "अरे नहीं भाई, टुनटुनिया को भी कम मत समझो" "अरे पुलिस जहाँ पहुँच जाए वहाँ हंगामा होना ही है" यानि एक-एककर सबका कैरेक्टर कटघरे में जाने लगा। कोई और उपाय न पा के टुनटुनिया ने थाली उठाई और चम्मच से जोर-जोर से बजाना शुरू किया। गन्नू आँखें मलते हुए भी चौंक के चिल्लाया
"किसको बच्चा हुआ बे?"
"अरे चुप सब" टुनटुनिया पूरी जान लगा के चीख पड़ी। सभी हकबका के रुक गये। उसने मगध एक्सप्रेस की चाल से सारा माजरा समझाया।
"धत्त तेरे की" सारे एक स्वर में बोले
"यही गुलगपाड़ा करवाने के लिए मुई सबेरे-सबेरे उठी थी" कहती टुनटुनिया चन्नो की ओर झाड़ू लेकर दौड़ी और पीछे ठहाके गूँज उठे। (समाप्त)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें