रविवार, 22 जुलाई 2018

प्रोन्नति (छोटी कहानी)


दो माटी की मूरतें अपार्टमेंट के पार्किंग में लगी थीं। हँसतीं, मुस्कुरातीं एक-दूसरे का सुख-दुख बाँटतीं। एक दिन एक मूरत को पहले मालेपर शिफ्ट कर दिया गया। दोनों दुखी हुईं लेकिन जमीन में रखी मूरत अपने साथी को ऊपर उठता देख संतुष्ट भी थी। पहले मालेपर गई मूरत उदास मन से नीचे अपने पुराने दोस्त को ताकती और बीते कल को याद कर बतियाती। 

कुछ दिनों के बाद पहले से उठाकर मूरत को चौथे मालेपर रख दिया गया। यकायक मिली ताजी हवा ने उसपर उसके पुराने साथी की बची-खुची सारी धूल को एक झोंके में उड़ा दिया। मूरत में थोड़ा अहं आ गया। अब वो नीचे कुछ-कुछ दिनों के बाद ही देखती थी। जमीनपर लगी मूरत इस बदले व्यवहार से अचंभित थी पर क्या किया जा सकता था?

समय आगे बढ़ा और अचानक चौथे माले से भी प्रोन्नत करते हुए मूरत को पंद्रहवें मालेपर लगा दिया गया। सूरज की तेज किरणों ने उसकी आँखें चौंधिया दीं। सारा शहर उसे सलाम करता प्रतीत होने लगा। उसने बेहद अनमनेपन से नीचे देखा, उसकी साथी मूरत उसे कहीं पहचान में नहीं आई, सबकुछ बहुत छोटा-छोटा दिख रहा था। उसने सिर वापस उठा लिया इसबात से अनजान कि बीच में ही दम तोड़ रही थीं उसके उसी छूटे दोस्त की आतुर पुकारें......

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