सोमवार, 30 जुलाई 2018

प्यार की धुन (कहानी)



रोज की तरह आज भी बैंक में बहुत शोर-शराबा था लेकिन कैशियर नंदिनी के कानों में एक सन्नाटा सा पसरा था और मन में विचारों का ज्वार-भाटा। काउंटर में आँखें गड़ाए किसी मशीन की तरह नोट गिनकर ग्राहकों को थमाए जा रही थी। हाथ भी ऐसा सधा हुआ कि क्या मजाल किसी गलती की जो अनजाने में हो जाए! चिंता का कारण आज भी वही, उसके पति सुजीत का रवैया। पिछले महीने से ही न जाने किस दुनिया में रहने लगा है! न ढंग से खाना न पीना! न छेड़छाड़ करती वे प्यारी-प्यारी बातें न ही वह व्यवहार जिसने शादी के एक साल होते-होते ही उसे उससे ऐसे बाँध दिया था जैसे कितने जन्मों के साथी हों। बार-बार सोचती कि कहीं मुझसे ही तो कोई गलती नहीं हो रही जिससे सुजीत का दिल दुख रहा हो? लेकिन कुछ समझ नही आता। अगर कोई भूल हो रही है तो सीधे बता भी तो सकता है! अब क्या पराई रह गयी हूँ उसके लिए! कितनी बार पूछ लिया मगर हर बार टालमटोल। ओह्ह्ह!

“मैनेजर सर बुला रहे हैं तुमको, वो जिस ग्राहक का चेक कैश नहीं हो पाया था पिछले हफ्ते, वह आया हुआ”

सहकर्मी नेहा की आवाज ने नंदिनी को ख्यालों के भँवर से बाहर खींचा।

“अरे लेकिन यहाँ इतने लोग जमा अभी...” नंदिनी की बात अधूरी रह गयी।

“तुम जाओ न, मैं देख लूँगी यहाँ का...जानती नहीं सर की हड़बड़ी वाली आदत?” नेहा ने उसको हाथ पकड़ के कुर्सी से उठाते हुए कहा। नंदिनी जाने लगी तो नेहा ने फिर टोका।

“ये फाइल तो लेती जाओ! सब रिकॉर्ड इसी में...!”

“ओह हाँ”

नंदिनी को ध्यान आया और उसने जल्दी से वह फाइल उठा ली और निकल गयी। मैनेजर के केबिन में पहुँचते ही साहब शुरू हो गये।

“अरे नंदिनी, तुमको बोला था न कि पहले दस्तखत जाँच लेना...”

निर्देशों की झड़ी के बीच नंदिनी को उस ग्राहक और मैनेजर से उलझे-उलझे ही लंच टाइम आ गया। नंदिनी को एक-एक निवाला मुश्किल से गटकते देख नेहा ने खिंचाई की।

“खा रही हो कि झेल रही हो? कब से देख रही तुमको किसी और ही दुनिया में गुम”

“मूड सही नहीं बिल्कुल”

“हम्म सुजीत के कारण न?”

नंदिनी चौंक गयी। इसको कैसे पता चला?

“तुमको कैसे मालूम?”

नेहा ने व्यंग्य से आँखें नचाई।

“मेरी बहन सुजीत के ही ऑफिस में है सो...”

“अच्छा, तुमने पहले कभी बताया नहीं बहन के बारे में खैर...सुजीत के ऑफिस में कोई दिक्कत चल रही क्या?”

नंदिनी ने पूरी बात जाननी चाही। नेहा ने अचम्भे से उसकी ओर देखा।

“अब सब मुझसे बुलवाना क्या! ऐसे में तुम बस समझदारी से काम लो...ठीक हो जायेगा सब”

नंदिनी को झल्लाहट होने लगी।

“हुआ क्या है? मुझे सचमुच नहीं पता कुछ...बताओ तो!”

नेहा का चेहरा असहज हो गया। बोली भी थोड़ी लड़खड़ाई।

“त...तुमको नहीं पता अ...अभीतक?” नंदिनी ने “न” में सर हिलाया। नेहा ने आसपास देखा फिर धीरे से कहा।

“सुजीत के बॉस की बेटी सुजीत से शादी करना चाहती है...बॉस भी अपनी बेटी की हर जिद पूरी करनेवाला फिल्मी बाप है, वह सुजीत को अपना डिप्टी बनाने के लिए तैयार शादी के बाद”

इतना सुनते ही नंदिनी के सिर में जोर-जोर से सनसनाहट होने लगी, धडकनें अनियमित सी हो गयीं। किसी तरह खुद को सम्हाला फिर जैसे-तैसे कुछ शब्द होठों से फूटे।

“ए...ऐसी बातें मुझे मजाक में भी नहीं पसंद” आवाज में थरथराहट स्पष्ट थी। “सही-सही बताओ जो बात वो”

“सही बात ये ही है” नेहा ने मजबूती से कहा। “तुमको अगर सही में नहीं पता था तो जान लो और सुजीत से बात कर के मामला सुलझा लो”

नंदिनी पसीने-पसीने हो चुकी थी। उसने अपना सामान बाँधा और सीधे मैनेजर के पास गयी। जूठे हाथ तक धोने का होश नहीं रहा।

“सर, मेरी तबियत खराब हो रही, मैं घर जा रही हूँ”

कह के सीधे निकल पड़ी। मैनेजर हैरानी से उसको देखता रहा। ऑफिस से घर लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर था। भावशून्य सी वह स्कूटी दौड़ाए जा रही थी।

“ए पागल है क्या?”

एक और कार वाला चिल्लाया जिसकी कार से भी स्कूटी रगड़ खा गयी थी लेकिन नंदिनी को परवाह कहाँ! इसी तरह घर आयी और कमरे में जाकर बैठ गयी। साँस ले रही थी या हाँफ रही थी, उसको भी नहीं पता था। आँखें टेबल पर रखी उसकी और सुजीत की तस्वीर पर चली गयी। दो साल पहले की घटनाएं एक के बाद एक नजरों के सामने बाइस्कोप की तरह चलने लगीं।

उसके पिता का सुजीत के घर रिश्ता लेकर जाना, पहलीबार में ही सुजीत और उसके घरवालों का उसे पसंद कर लेना, ससुराल में मिला वो अपनापन, सुजीत का दिया वह प्यार...। नंदिनी की आँखें बरसना चाह रही थीं लेकिन मन अभी भी भरोसा करने के लिए राजी नहीं था कि सुजीत उसे छोड़ सकता है! वह तो बच्चे तक के लिए तैयार नहीं हो रहा कि ये नयी जिम्मेदारी कहीं हमारे बीच समय की कमी न करा दे! ऐसा पागलपन है उसका मेरे प्रति फिर ये कैसे हो सकता की वह किसी और लड़की के बारे में सोचेगा भी? दिल कुछ कह रहा था, दिमाग कुछ।

“सुजीत को अगर उसके बॉस की बेटी मिल गयी तो उसका कैरियर बन जायेगा क्योंकि बॉस खुद उसे अपनी जगह पर लाने के लिए बेताब है। आज डिप्टी बना रहा, कल खुद की कुर्सी दे देगा। मल्टीनेशनल कंपनी है, करोड़ों रुपये मिलेंगे। मुझसे क्या मिल सकता है? साधारण सरकारी नौकरी में हूँ, इसी पोस्ट पर रह जाउंगी जिंदगीभर मगर क्या मेरी भावना का कोई महत्व नहीं? मैंने भी अब सुजीत से अपनेआप को पूरी तरह से जोड़ लिया है, उसका अलग होना क्या मुझे जीने देगा? सुजीत का ऐसा रवैया कहीं इसलिए तो नहीं कि मैं खुद ही उससे निराश होकर दूर चली जाऊं! अखबारों में पढ़ा था कि पति ने कैरियर के लिए पत्नी को ठुकराया, क्या यह मेरे साथ भी होगा? ठीक है, सुजीत ने नहीं निभाया तो क्या! मैं निभाउंगी। मैं उसकी खुशी के आड़े नही आउंगी, हाँ, यही सही रहेगा। बस वो एक बार कह दे, मैं खुद उससे दूर...”

नैन आखिर सावन-भादो होने ही लगे। सुजीत को फोन कर के बुलाना चाहा लेकिन किसी मन के किसी कोने से जैसे आवाज आई कि ये अधिकार अब तुम्हारा नहीं। पलभर में ही कितना कुछ बदल गया था उसकी जिंदगी में! चुपचाप बैठ के सुजीत का इन्तजार करने लगी। मायके से माँ का फोन आ रहा था। कॉल मिस होते-होते बंद हो गयी लेकिन वह जड़वत सी शून्य में ताकती रही।

“आने दो, आज ही सब साफ-साफ बात कर लूँगी, कोई परेशानी नहीं होगी उसको मेरी ओर से, मेरा चाहे जो भी हो”

नंदिनी जैसे किसी धुन में निर्णय लिए जा रही थी। आँसू बहते जा रहे थे, बहते जा रहे थे। तभी लॉक खुलने की आवाज आयी और सुजीत खड़ा मिला।

“तुम आज जल्दी घर आ गयी क्या?”

फीकी सी मुस्कान के साथ नंदिनी ने “हाँ” में सिर हिलाया। सुजीत के हाथ में कोई लिफाफा था।

“इसमें क्या है?”

उससे पूछा। सुजीत थका-हारा सा धम्म से सोफे पर बैठ गया। थोडा हिचकिचाते हुए नंदिनी की तरफ देखकर बोला।

“तुमसे कुछ बात करनी है, तुम्हारा साइन हो जाए कागजों पर तो...”

नंदिनी का दिल धक-धक करने लगा। लिफाफे में तलाक के कागजों की सम्भावना ने ही उसका कलेजा मुँह में ला दिया था। उसने बीच में ही सुजीत को रोक दिया।

“लाओ, कर देती हूँ हस्ताक्षर...”

कहते-कहते उसकी रुलाई फिर से फूट गयी। सुजीत जल्दी से उठा और उसके बगल में बैठ गया।

“रोने क्यों लगी?” उसका चेहरा अपने हाथों के बीच लेकर पूछा।

“अब रोना ही मेरी जिंदगी है लेकिन तुम चिंता मत करना, तुमपर इनकी कोई आँच नहीं आएगी, तुम जहाँ रहो खुश रहो”

"हम्म" सुजीत ने लंबी साँस भरी। “वो बॉस की बेटी वाली बात तुमको पता चल गयी क्या?”

नंदिनी बिना जवाब दिए रोती रही। सुजीत समझ गया कि इसको पता लग चुका है। उसने नंदिनी के कंधे पर हाथ रखा और बोला।

“रुको, बेड से चादर उठा के ले आता हूँ, इतने सारे आँसू मेरा रुमाल नहीं सोख पायेगा”

“काश! मैं तुम्हारे मजाक पर आज भी हँस पाती”

नंदिनी ने अपना सिर सुजीत के कंधे पर रख दिया।

“अरे उठो तो...” सुजीत ने कहा।

“आखिरी बार आज बस...”

नंदिनी कहीं खोयी-खोयी बोली। सुजीत ने उसको प्यार से बगल में बिठाया और कहा।

“मैं नौकरी से इस्तीफा देकर आया हूँ बीवी जी, आपके और केवल आपके लिए, रोना बंद करिए”

“क्या!”

नंदिनी के रोने पर जैसे अचानक ब्रेक लगा। वह आँखे फाड़ सुजीत को देखने लगी। वह आगे कहने लगा।

“हाँ, यह सही बात है कि वो लड़की मुझसे शादी करना चाहती थी, एकतरफा लगाव होगा उसको किन्तु जैसे ही उसने अपने मन की बात बताई, मैंने उससे दूरी बना ली, पहले भी बस ऑफिस के कामों से ही उसके केबिन में जाता था, वह भी बंद कर दिया क्योंकि जो वो माँग रही थी, उसपर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अधिकार है, मुझे सपने में भी वह किसी और को देना स्वीकार नहीं। उसने जब ये देखा तो अपने पिता के माध्यम से मुझ पर दबाव बनवाना चाहा, मैंने उसके पिता को बहुत समझाया कि यह संभव नहीं है लेकिन वे नहीं माने, हारकर मैंने नौकरी ही छोड़ने का फैसला कर लिया, हालाँकि मुश्किल से मिली थी ये नौकरी सो बहुत तनाव में रहा पिछले दिनोंखैर, ऐसी सौ नौकरियाँ भी तुम्हारे आगे कुछ नहीं”

“लेकिन तुमने ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई?” नंदिनी ने उसे प्यार से थोड़ा धकेलते हुए पूछा।

“अब मुझे सही नहीं लगा, सोचा कि तुम बेकार परेशान होगी, एकबार उसका झमेला निपटा लूँ तो कहूँगा लेकिन यहाँ परेशान हो ही गयी”

“लिफाफे में क्या है?”

“नये फ्लैट के कागज हैं, किराये के लिए, तुम्हारे बैंक से थोड़ी ही दूर पर ये अपार्टमेंट, तुमको पसंद आये तो हम वहीं चल के रहेंगे, ये घर तो मैंने अपने ऑफिस के नजदीक होने चलते ले लिया था न!”

नंदिनी के आँसू गालों पर ढलके थे। वह अब पूरी तरह शांत हो चुकी थी। बस लगातार रोने की वहज से आँखें और नाक सूज के लाल हो गये थे। सुजीत ने छेड़ा।

“क्या सोच रही हो कि ये उल्लू अब मेरी सैलरी पर खायेगा? चिंता मत करो, बस कुछ महीने खिला दो, नयी नौकरी खोज लूँगा जल्दी ही”

“पागल...जिंदगीभर खिलाऊँगी तुमको बैठा के”

नंदिनी सुजीत से कस के लिपट गयी। आँसू फिर से आने लगे थे लेकिन अब इनमें खुशी ही खुशी थी (समाप्त)।

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